मैं मेवाड़ की माटी मेवाड़ की गाथा सुनती हूं
जब राणा कि मृत्यु सुनी अकबर ने फुटफुट कर वो भी रोया था
मुग़ल देख कांप उठते थे चेतक पर सवार महाराणा प्रताप को
माटी का रक्षक माटी के लिएं ही जीया था
एकलिंग नाथ का सेवक महाराणा ने अधीनता नहीं स्वीकारी थी
जंगलों में जीवन बीता लिया, घास की रोटी से भूख मिटा ली
न किसी पे आंच आने दी , न किसी के सामने झुके
बस राणा ने माटी का रण चुका लिया
घनघोर युद्ध कर इतनी लाशे बिछा दी
लहू की नदियां बहने लगी माटी ने रंग बदल दिया
माटी का पुत्र माटी के लिए ही जीया मरा
मैं मेवाड़ की माटी आज ये गाथा सुनती हूं।
दक्षल कुमार व्यास
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
सुन्दर.. मेवाड़ भारत की शान है.
Thanku sir
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