रेंगता सा यह शहर
व्यस्तता से भरा शहर
सुविधा में डूबा शहर
गरीबों की लगी कतार हैं
अमीरों की लगी कार हैं
इंसानियत का सवाल नहीं
मानवता का नाम नहीं
प्रकृति का सम्मान नही
दिल को पेसो की लालसा
दिमाग को आराम की लालसा
डिग्रियां लिए युवा खड़ा
रोजगार ढूंढ रहा कटोरा लिए
ऊंची, रंगीन इमारतें हैं
अंदर कुछ बाहर कुछ भाव है
काले गुब्बारे में भरा आसमा
यह शहर मालामाल हैं
रात को रोशनी ही रोशनी
सुबह अंधेरा दिखा
इन लम्बे ऊंचे डब्बो में
में अकेला खड़ा।
दक्षल कुमार व्यास
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Thanku charu
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