आज प्रकृति से हुआ रूबरू ऐसे
ये ठंडी धीमी हवा कैसी
खुशबू मिट्टी की, विचारो की, शुद्धता की ऐसी
ऊंची ये वृक्ष की डालियां हाथ फैलाए हुई ऐसी
वर्षा का स्वागत करने खड़ी कैसी
बंधन से मुक्त हुए बादल ऐसे
बंदिशों में नहीं जी रहे वृक्ष केसे
आसमा को छुने की होड़ लगी ऐसी
स्वयं रास्ता निर्धारित करता ये जल केसे
खल- खल बहता औषधि युक्त जल ऐसे
चिंता मुक्त पड़ी चट्टाने ऐसी
स्वर्ग का एहसास हुआ केसे
प्रकृति से हुआ रूबरू ऐसे।
दक्षल कुमार व्यास
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