आज सूर्य देवता कुछ आलस्य में लग रहे थे, तभी तो बादलों की चादर ओढ़ कर सुबह के 6 बजे तक सोये हुए थे । ठंडी हवा उन्हें थपकी देकर सोने पर सुहागा जैसा कार्य कर रही थी । परंतु चाहे जो भी हो आलस चाहे सूरज को हो या फिर संपदा के पति को या उसके बच्चों को । परन्तु खुद यदि संपदा आलस्य से भर जाए तो सभी की दिनचर्या की गाड़ी के पहिए वहीँ रुके रह जाए, जहाँ वो पिछले दिन थे और फिर जो दौड़ भाग घर में मचती थी उसकी तो कल्पना भर से सिहर उठती थी सपंदा, सो आलस्य शब्द निकाल फेंका था उसने अपने जीवन में से । हाँ अपना कोई कार्य हो तो वह जरूर सहारा लेती थी इस क्रिया का।
जल्दी उठकर बच्चों का लंच, ब्रेकफास्ट तैयार कर, पति को आफिस भेज कर चाय लेकर बालकनी में आकर बैठ जाती सपंदा। पति सरकारी पद पर थे इसलिए फ्लैट आवंटित था उन्हें सरकारी कलोनी में। वरना दिल्ली जैसे बड़े भीड़ भाड वाले शहर में इतना खुला वातावरण मिलना मुश्किल था । कालोनी में हर प्रकार के वृक्ष लगे हुए थे अमरुद, नीबू, संतरे, जामुन,बरगद,पीपल,करीपत्ता,पपीता,अमलतास आदि।
वैसे तो यह कालोनी सरकारी थी फिर भी सभी का अपने अपने फ्लैट के सामने की जगह पर वर्चस्व चलता था अधिकतर उनका जिनके घर ग्राउंड फ्लोर पर थे जैसे जिसके घर के आगे नींबू का पेड़ था वही उसका मालिक था । हालाँकि सरकारी कागज़ों में ऐसा कहीं नहीं लिखा था तो ऐसे ही संपदा के नीचे ग्राउंड फ्लोर पर जो आंटी रहती थी उनके घर के बाहर जामुन का पेड़ था, अर्थात वह मालकिन थी उस पेड़ की। तो जामुन के मौसम में चादर बांध दी जाती पेड़ के नीचे और बड़े अधिकार के साथ फिर थोड़ा-थोड़ा बांटा जाता था उन्हें।
हालाँकि पेड़ की देखभाल भली प्रकार से न होने के कारण जामुन बहुत अच्छी क़्वालिटी की नहीं होती थी परन्तु फिर भी सपंदा ले लेती थी । पर वह आंटी को क्या बताए कि उसके पति और बच्चे छूते भी नहीं थे उन जामुनों को । साथ में डांट पड़ती सपंदा को अलग कि क्यों ले लेती हो मना कर दिया करो, परन्तु सपंदा करती भी क्या आखिर पूरी कलोनी में रुतबा था जामुन वाली आंटी का, तो कौन नाराज करे उन्हें। हालाँकि बहुत सी जामुन नीचे भी गिरती थी फिर भी आंटी को यह बर्दास्त नहीं था कि उनसे बिना पूछे कोई जामुनों को छू भी ले ।
अचानक एक दिन नीचे शोर सुन बालकनी में आई संपदा तो देखा कि आंटी ने एक बूढ़ी औरत को पकड़ के बैठा रखा था चोरी करने के इलजाम में । जब सपंदा ने पूछा तो वह बोली कि यह बुढ़िया उनकी जामुन चुरा रही है और उन्होंने कुछ मुटठी भर जामुन दिखाए । सभी उन आंटी का ही साथ दे रहे थे। पर सपंदा का ध्यान उस बूढ़ी औरत की तरफ गया जो बहुत गरीब दिख रही थी और कह रही थी कि वह शुगर की मरीज है किसी आयुर्वेदिक डाक्टर ने उसे जामुन की गुठलियों से दवाई बनाकर खाने की सलाह दी है । वह खरीद नहीं सकती जामुन बहुत मंहगे आते है बाजार में। पर आंटी को तो वह केवल एक चोर ही नजर आ रही थी।
सपंदा को न जाने क्यों उन आंटी की बुद्धि पर तरस आया और सोचने लगी आंटी चोरी तो आप भी कर रहे हो इस सरकार द्वारा लगाए गए पेड़ पर लगे फल की और ऊपर से सीना जोरी भी।
संपदा के पति कल ही एक किलो जामुन लाए थे अच्छी क़्वालिटी के, रात को किसी ने नहीं खाई वो ऐसी ही रखी थी फ्रिज में, वो यह सोच ही रही थी कि तभी उसे नीचे अपने बच्चे दिखाई दिए उन्हीं जामुनों के साथ, वह उस बूढ़ी औरत को वह जामुन देने गए थे और बोले अम्मा और जरूरत हो तो कल फिर आ जाना हम पापा को बोल देंगे लाने के लिए।
आज सपंदा को आश्चर्य हो रहा था, वह बूढ़ी औरत आशीष दे रही थी उन्हें । जिन बच्चों को वह नीचे से कुछ लाने के लिए कहती तो आलस्य के कारण बहाने बनाते थे । आज वह बिना किसी स्वार्थ के अपना नैतिक और सामाजिक कर्तव्य निभा रहे थे। और उधर जामुन वाली आंटी मुंह पिचकाकर अपने घर के अंदर खिसक ली।
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