राह मैं चल रही थी, अपने अस्तित्व को ढूंढ रही थी, की अचानक एक आवाज़ आई, जिसने खुद से मेरी पहचान कराई , काहा कि किस खोज में निकली हूं, तेरी पहचान तो इस माटी से है । मैंने उसकी आवाज़ से उसका वजूद पूछा, कहा कि मैं वही भूमि हूं, जिसने इतिहास के सब चेहरे देखे हैं, कुछ नाम तो कुछ गुमनाम, कुछ कहीं तो कुछ अनकहीं कहानियाँ सुनी और लिखी हैं; मैं वही हूं जिसे त्याग और बलिदान से सींचा गया है । जहां काई संतो ने मोक्ष की प्राप्ति की है, जिसका श्रृंगार विशाल हिमालय और पवित्र नदियों से किया गया, जहाँ धर्म और कर्म के सिद्धांत से सुनहरे पने लिखे गए हैं । मेरे ही आँचल तले प्यार और एकता के पाठ पढ़ें गये, जहां प्रसीद स्थलों मैं, उसका सुनहरा इतिहास अंकित किया गया है । जिसने रानी लक्ष्मीबाई की तलवार और बापू की छड़ी से अंग्रेजों से बगावत करते हुए भी देखा है, मैंने अपने देश के बच्चों को, मेरे लिए बलिदान देते भी देखा है । हां मैं वही मिटटी हूं, जिसने सियासत का खेल भी देखा है, जहां रक्त से लकीर खींचे और मेरे टुकड़े कर के, अपने ही लोगों को बटते हुए भी देखा है । मैंने अपने ही सैनिकों को मेरी आन और शान के लिए अपने आप को पूर्ण समर्पित करते हुए भी देखा है उनके परिवार की नम आँखें, उनके घर जाने वाली वो खाली रस्तों, को उनका इंतज़ार करते भी देखा है । मैं वही हूं जहां गरीबी, लाचारी, भेद भाव और मासूमों का लहो भी देखा है, मगर उन्ही घावों से, अपने ही अश्कों से अपने आप को, फिर से उठते भी देखा है । मैं वही दर्पण हूं जिसने विकास का एक नया दौर और अपनी युवा पीढ़ी को फिर से एक आवाज बंते हुए भी देखा है । जो मेरे ही इतिहास और भविष्य को अपनी मेहनत से जोड़ कर, मेरा नाम विश्व के उन सुनहरे पन्नो में प्रकाशित करेंगे, मैं वही मिट्टी हूं जहां सिर्फ भगवा नहीं बल्कि सफेद, नीला हारा रंग भी संजीधा है । जहां मैंने कई रंगों के साथ,अपनी एक सुंदर तस्वीर और छवि बनाई है, हां कुछ कमियां हैं मुझमें, मगर इन कमज़ूरोयों को मेरी ताक़त तुझे बनाना है, तेरी पहचान मुझसे है, तेरी कर्मभूमि और मातृभूमि हूं मैं, अपने अंदर देख, तेरे कण कण में समायी हूं मैं। जय हिंद चारु कालरा
आज़ादी का रंग
A Celebration of my land, a celebration of my identity.
Originally published in hi
Charu Kalra
13 Aug, 2023 | 1 min read
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