ये लढ़कियाँ इतना रोती क्यूँ हैं ?
सुनो
तुम लड़कियाँ इतना रोती क्यूँ हो ?
क्यूँ रोना इतनी बुरी बात है क्या ?
मैं रोती हूँ जब बुरा लगता है ।
मैं रोती हूँ जब ग़ुस्सा आता है ।
मैं रोती हूँ जब शर्मिंदा होती हूँ ।
मैं रोती हूँ जब झुकना पढ़ता है ।
मैं रोती हूँ जब सुनना पढ़ता है ।
और कभी क़बार ज़्यादा हस्ते हस्ते भी रो देती हूँ ।
हमें नहीं दिए जाते बन्दूकों और गाढ़ियों से ख़िलौने।
हमें नहीं सिखाया जाता ग़ुस्सा करना ।
हमें थमा दिए जाते हैं गुड्डे गुड्डियाँ ।
और जो बेचारे लढ़के रो देते हैं ,
कह दिया जाता है उन्हें भी लड़कियाँ।
और तुम पूछते हो ये लढ़कियाँ इतना रोती क्यूँ हैं ।
Paperwiff
by chandanpreetkaur