पापा मेरी तरक़्क़ी से जलते हैं |

माँ बाप कभी जलते नहीं अपने बच्चों की तरक्की से,हमेशा गर्व ही महसूस करते है|लेकिन कोई भी तरक्की मां-बाप की इज्जत से बढ़कर नहीं होती |उनके आशीर्वाद से तो तरक्की कई गुना बढ़ जाती है

Originally published in hi
Reactions 0
733
Chanchal Narula Puri 16 Nov, 2019 | 1 min read

बात उन दिनों की है जब विजय के पापा गांव से दूर घर-घर पैदल जा कपड़े बेचा करते थे |एक-एक पैसा जोड़ने के लिए मिलों पैदल चलते थे|उनका एक ही सपना था कि मेहनत भले ही करूंगा पर अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाऊंगा| धीरे-धीरे पैसे जोड़ एक ठेला खरीद लिया और गांव के दूसरे छोर पर लगाया क्योंकि गांव में तो पहले ही जमे जमाए कपड़ा व्यापारी थे |विजय को भी यही सीख देते रहते की मेहनत करने से पीछे नहीं हटना बेटा कभी|विजय भी जब कभी फ्री होता पापा की हेल्प किया करता था फिर वो चाहे कपडे सलीके से रखने हों या ग्राहक को दिखाने हों |जब भी लोग मोल भाव करते पिता जी बड़े ही विनम्रता से 20-30 रुपए कम कर दिया करते थे |विजय हैरानी से पूछता की पापा सामने रेडी वाला ये चीज़ इतने की ही दे रहा था आप क्यों इतना दाम कम कर देते हो ? पिता जी भी मुस्कुरा कर बस यही बोलते बेटे ईमानदारी की रोटी खानी चाहिए|थोड़ा बहुत मुनाफा रखना सही है पर बिलकुल डबल दाम लगाना सही नहीं | धीरे धीरे समय बीतता गया और दोनों बच्चे अच्छे पढ़ लिख भी गए |बिटिया की तो शादी कर दी पास के ही गांव के लड़के से | विजय ने कहा पापा मैं तो आपके इस कपडे के व्यापार को ही आगे बढ़ा लूंगा| सारा काम जल्दी ही संभाल लिया विजय ने | सब सीख तो गया ही था अपने पापा से| कहां से माल लाना ?कौनसा माल कितना लाना? सब जानता था |बस जब तक पिता जी के हाथ बाघ डोर थी तो बस देखता ही था कुछ बोलता नहीं था|धीरे-धीरे सारे गुण सीख लिए बिज़नेस के |मार्जिन भी ज्यादा रखने लगा |धीरे -2 ठेले से दुकान और दुकान से शोरूम बन गया|तरक्की सर पर चढ़ बोलने लगी|घर भी शहर मे ले लिया|पैसे के नशे में अँधा हो गया था किसी को कुछ समझता ही नहीं था अपने आगे|शोरूम में काम करने वाले को भी जलील कर दिया करता था |पापा मना करते की बेटे ऐसे नहीं बात वो सब हमारे परिवार जैसे हैं| एक दिन जब पिताजी ने किसी बात पर रोका तो पिता जी पर भी चिल्ला दिया करता था की आपको क्या पता नौकरों से कैसे काम करवाया जाता है आप खुद जो सारी उम्र नौकर बने रहे | पिताजी को यह बात बहुत बुरी लगी |इतना ही बोल पाए ठीक है अब मैं तेरे शो रूम में नहीं आया करूंगा ,तुझे जैसे संभालना है संभाल |जब घर पर मायूस लौटे तो बीबी नै पूछा क्या हुआ क्यों उदास हो ?जब घटना बताई तो विजय की माँ को भी बुरा लगा उन्होंने कहा मैं बात करुँगी |जब विजय घर लौटा तो माँ ने बोला ये क्या तरीका है अपने पिताजी से बात करने का? विजय ने भी गुस्से में कहा साफ़ साफ क्यों नहीं कहते पिता जी, की वो मेरी तरक्की से जलते हैं |

 मां को बुरा तो बहुत लगा पर फिर भी आराम से विजय को समझाते हुए कहा माँ बाप कभी जलते नहीं अपने बच्चों की तरक्की से,हमेशा गर्व ही महसूस करते है|लेकिन कोई भी तरक्की मां-बाप की इज्जत से बढ़कर नहीं होती |उनके आशीर्वाद से तो तरक्की कई गुना बढ़ जाती है| विजय को अपनी गलती का एहसास हुआ और पिताजी से माफी मांगते हुए बोला पिताजी मैं आगे से ध्यान रखूंगा कि जैसे आपने इमानदारी से अपना काम किया मैं भी आपके उसूलों को अमल करूंगा|

0 likes

Published By

Chanchal Narula Puri

chanchal

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.