मंजू देवी के तीन बेटे हैं, तीनों की शादी हो चुकी है। एक बेटा पुना और दो बेटे मुंबई में रहते हैं| तीनों का ही अपना अपना कारोबार है जो भगवान की कृपा से अच्छा चल रहा है। एक बेटी है जिसकी शादी हो गई है जो कानपुर में ही रहती है।
मंजू जी को अपना पुश्तैनी घर बड़ा प्यारा है इसलिए मंजू जी अपने बेटे बहुओं के पास ना जाकर कानपुर में ही अपने घर में रहती हैं। बेटी भी इस शहर में है तो मिलना जुलना हो जाता है|
समय के साथ अब मंजू जी के शरीर ने भी साथ देना छोड़ दिया| उम्र बढ़ रही थी शरीर कमजोर पड़ रहा था। लेकिन मंजू जी चाहती थीं जिस घर में वह दुल्हन बन कर आई थीं उसी घर से उनकी अर्थी भी उठे। जिस घर में उन्होंने अपने बच्चों और पति के साथ जीवन काटा है जीवन के अन्तिम दिनों में वे कानपुर में अपने घर ही रहें|
ऐसी स्थिति में दोनों बड़ी बहुओं ने साफ मना कर दिया कि वे कानपुर आके नहीं रहेंगी, आना है तो मंजू जी ही उनके घर आयें| छोटी बहू किरण ने कानपुर आके मंजू जी की देखभाल की जिम्मेदारी ले ली| किरण एक सुलझी हुई महिला थी, किरण का मायका भी संपन्न था| एक ही बेटी थी तो नाजो में पली थी, लेकिन किरण के संस्कार ही थे जो उसने अपनी सास की बात समझी ओर सेवा करने आ गई|
जैसे जैसे दिन जा रहे थे मंजू जी भी कमजोर हो रही थीं, बिस्तर से उठने में भी तकलीफ हो रही थी| उनके सारे काम अब कमरे में ही होते, शौच क्रिया के लिए भी नहीं जा पाती थी, कभी कभी कपड़े भी खराब हो जाते थे। मंजू जी को किरण बच्चे की तरह रखती, उनको नहलाना बाल बनाना, खाना खिलाना सभी काम मन से करती।
बीच बीच में मेहमानों का भी आना जाना हो जाता था, पूरे दिन कोई ना कोई मंजू जी के हाल चाल लेने आया रहता| मदद के लिए काम वाली थी, पर मजुं जी के सब काम किरण खुद ही करती थी। एक दिन मंजू जी की बेटी सुनीता अपनी मां से मिलने आई| मंजू जी ने बेटी के सामने किरण की बहुत तारीफ की, मंजू जी ने कहा कि "किरण तो बेटी से बढ़कर है, वरना आज के समय में कौन है जो अपनी सास की इतनी सेवा करेगा?"
सुनीता को भाभी की तारीफ रास नहीं आई, उसने अपनी मां से कहा कि "भैया भाभी को आपसे नहीं आपके धन से प्यार है| तभी इतनी सेवा कर रहे हैं, वरना नहीं करते|"
मंजू जी को अपनी बेटी की बात पर बहुत गुस्सा आया, उन्होंने कहा "कौनसा धन है मेरे पास? बस चार सोने की चूड़ियां और ये घर| इसके लिए किरण मेरी सेवा करेगी? इसके पास क्या कमी है, इसका पति इतना कमाता है, गहने भी बहुत हैं इसके पास| सेवा करने के लिए मन होना चाहिए। सेवा करना कोई छोटी सी बात नहीं है| आज ये एक महीने से मेरे पास है और कोई तो नहीं आता| कल मैं मर जाउंगी तब सब आकर खड़े हो जाएंगे इस घर का हिस्सा मांगने के लिए। और मेरे पास अगर धन होता भी तो मैं किरण को ही देकर जाती, क्योंकि जो सेवा करता है फल उसे ही मिलता है इसमें कोई नई बात नहीं है| लेकिन अपना ढेर सारा आशिर्वाद जरूर दूंगी अपनी बेटी किरण को कि ज़िंदगी में इसे किसी चीज की कमी ना हो|"
किरण जो सारी बातें सुन रही थी उसकी आंखें नम हो गईं| उसे आज अपनी सेवा का फल मिल गया था, इससे अधिक कुछ और नहीं चाहिए था| बड़ों के आशिर्वाद के आगे किसी का क्या मोल!
धन्यवाद
©️®️ वर्षा अभिषेक जैन
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Nice story 👍
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