शीतल के घर में यूं तो कोई रोक टोक नहीं है। सभी को अपनी मर्ज़ी के काम करने की पूरी छूट है, अपने मन पसन्द कपड़े पहनो या घूमने जाना हो पूरी आजादी है। शीतल के घर में सास-ससुर और पति ही रहते हैं। अभी शीतल की दादी सास जो गांव में रहती हैं यहां शीतल के घर रहने आईं हुई हैं। शीतल की दादी सास को अपना गांव ही प्यारा लगता है, इसलिए इतना कहने पर भी साल में सिर्फ एक बार ही आती हैं, एक महीने रुक के चली जाती हैं।
जब भी शीतल की दादी सास यहां रहने आती हैं, शीतल की सास कुर्ता पजामा छोड़ साड़ी ही पहनती है, क्योंकि शीतल की सास ने कभी भी उनके सामने साड़ी के आलावा कुछ और नहीं पहना| इसलिए बड़े के मान और शर्म के कारण वो साड़ी पहनती है। क्योंकि दादी सास गांव के माहौल में रही हैं उन्हें साड़ी ही अच्छी लगती है।
शीतल भी दादी सास के सामने साड़ी ही पहनती है, हालांकि शीतल की सास ने शीतल को कहा था कि वो चाहे तो सूट पहन ले लेकिन शीतल को साड़ी में कोई परेशानी नहीं होती। उसे अच्छा लगता है साड़ी में सजना।
एक दिन अचानक शीतल की दोस्त रिया आ गई। शीतल को साड़ी में देख कर ही बोल पड़ी "क्या शीतल इस जमाने की होकर भी तुम अभी तक साड़ी पहनती हो?"
शीतल ने कहा "अरे रिया पहले अंदर तो आ जाओ, फिर आराम से बाते करते हैं।"
शीतल ने रिया को कमरे में बैठाया और पानी ले कर आई।
रिया ने कहा "मैंने तो शादी से पहले ही शर्त रखी थी कि मुझसे साड़ी पहनने को मत बोलना, मैं तो किसी की नहीं सुनती| यार मेरी लाइफ है कैसे भी कपड़े पहनूं, तू क्यों इतना सुनती है?"
शीतल ने कहा "ऐसा कुछ भी नहीं है, तुझे पता ही है मैं हमेशा सूट ही पहनती हूं| बस दादी जी आती हैं तब साड़ी पहनती हूं क्यूंकि मुझे अच्छा लगता है। मेरी सास अपनी सास का इतना मान रखती है तो वो तो मेरी दादी सास हैं, इतना तो कर ही सकती हूं। साड़ी ही तो है कोई गले का फंदा थोड़ी है।"
रिया ने मुंह बनाते हुए कहा "रहने दे रहने दे, मुझे सब पता है| तेरी सास ने तुझे बोला होगा ये सब अपनी बहू को दबा के रखने के लिए करती है सासें, वरना किसी लड़की से पूछ, कोई साड़ी नहीं पहनना चाहता।"
शीतल ने कहा "नहीं रिया, तुम गलत सोच रही हो| साड़ी पहनने का मतलब ये तो नहीं कि ससुराल वाले दबा के रखना चाहते हैं या पिछड़ी सोच वाले हैं। मेरे ससुराल वाले तो बहुत अच्छे हैं, हर चीज की छूट है मुझे और उसके लिए मुझे कोई शर्त भी नहीं रखनी पड़ी। सबने मुझे मन से अपनाया है। साड़ी मैं अपनी पसन्द से ही पहनती हूं, क्योंकि मुझे कभी कभी साड़ी पहनना अच्छा लगता है और सारे पतियों की कहीं ना कहीं इच्छा होती है अपनी पत्नी को साड़ी में देखने की। आधुनिकता सिर्फ पहनावे में नहीं, सोच में होनी चाहिए। तू भी साड़ी पहना कर कभी कभी रिया, तुझे भी अच्छा लगेगा।" शीतल ने रिया को कॉफी देते हुए कहा।
दोस्तों, आज कल साड़ी पहनना तो ऐसा हो गया है जैसे बेचारी के घर में कितनी पाबंदियां हैं। लोग सिर्फ साड़ी के हिसाब से घर के लोगों पर टिका टिप्पणी कर देते हैं बिना कुछ सोचे समझे, साड़ी ही तो है!
आप अपनी राय जरुर दें इस विषय पर।
धन्यवाद
©️®️ वर्षा अभिषेक
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.