"आज मैं जो कुछ भी हूं उसका पूरा श्रेय मैं अपनी सासू मां को देना चाहूंगी| आज वो हमारे साथ नहीं हैं लेकिन उनके आशिर्वाद से मैं आज ये मुकाम हासिल कर पाई हूं। वो नहीं होती तो आज मैं टीचर से प्रिंसिपल नहीं बन पाती|" मधु आज स्टेज पर सभी को शुक्रिया अदा कर रही थी।
आज मधु की जिंदगी का बहुत बड़ा पल है, आज वो अपने स्कूल की अध्यापिका से प्राधाना अध्यापिका बनी है।
मधु के घर में पति है जो कपड़े का धंधा करते हैं, काम इतना बढ़ा हुआ है कि मधु को ज्यादा वक्त नहीं दे पाते, बेटा है जो मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है, अभी होस्टल में रहता है। मधु का भी पूरा दिन स्कूल में ही बीत जाता है, वैसे भी घर में कोई ओर है भी नहीं, अकेले घर पर करें भी क्या।
आज बैठे बैठे मधु की आंखो में पुराने दृश्य घूम रहे थे कि कैसे उसने नौकरी कभी ना करने का फैसला कर लिया था| अगर उस दिन रमा जी ने नहीं समझाया होता तो आज वो कितनी अकेली हो गई होती।
आज से पच्चीस साल पहले मधु, रमा जी की गृह लक्ष्मी बन कर आई थी। उस समय मधु बीएड की पढ़ाई कर रही थी। रमा जी के सख्त आदेश थे पढ़ाई अपनी जगह और घर का काम अपनी जगह। मैं तुम्हे पढ़ाई से नहीं रोक रही, लेकिन घर परिवार की जिममेदारी तो तुम्हे उठानी पड़ेगी।
मधु पढ़ाई बहुत मन लगा कर करती थी, रमा जी भी मधु की रुचि लगन को देख घर के काम पर ज्यादा जोर नहीं देती थी। अपनी मेहनत के बलबूते, मधु की बीएड कर एक अच्छी स्कूल में नौकरी लग गई।
मधु की शादी के भी दो साल पूरे होने वाले थे। घर में नन्हे राजकुमार की किलकारी गूंजने लगी। मधु का पूरा ध्यान अपने बच्चे पर ही था। वो एक पल भी अपने बच्चे से दूर नहीं रहना चाहती थी। मां का दिल ऐसा ही होता है। जब मुन्ना छ: महीने का हो गया, तब रमा जी ने कहा "बहू तुम वापस स्कूल जाना शुरू क्यों नहीं कर देती!"
"नहीं मां जी अब मैं घर पर ही रहना चाहूंगी, वरना सब कहेंगे कैसी मां है, बच्चे के लिए समय ही नहीं है। अब अपनी मां की जिम्मेदरियां पूरी करूंगी" मधु ने उत्तर दिया।
"सुन बहू, तू बड़ी मेहनत कर के स्कूल में टीचर लगी है| एक शिक्षक का स्थान तो भगवान से भी ऊपर होता है। तू स्कूल में जाकर भी अपनी मां की जिम्मेदारी पूरी कर सकती है। कौनसा पूरे दिन स्कूल में रहना है, एक बजे तक तो तू आ ही जाती है। फिर पूरा दिन पड़ा है मुन्ने के लिए" रमा जी ने समझाया।
"पर मां जी अब मेरा मन नहीं लगता, अब मेरी तो दुनिया मेरे बच्चे से ही शुरू और ख़तम होती है, नहीं करनी नौकरी।" मधु ने कहा।
"मधु बेटा ये बात तू आज कह रही है, मुझे जीवन का अनुभव है इसलिए कह रही हूं| अपनी पहचान कभी नहीं खोनी चाहिए। आज ये बच्चे हैं, कल ये भी बड़े हो जायेंगे, इनकी अपनी दुनिया बन जाएगी, इनके अपने सपने होंगे। जब मुन्ना 16 साल का हो जाएगा, तब ये अपनी पढ़ाई, दोस्तों और अपने सपने पूरा करने में लगे होंगे। फिर विदेश में नौकरी, शादी, इनकी जिंदगी बदल जाएगी। पति अपने काम धंधे में लगे रहेंगे। पर तू अकेली रह जाएगी, फिर तू सोचेगी अपने बच्चों के लिए मैंने अपनी पढ़ाई नौकरी सब छोड़ दी और अब बच्चे के पास तेरे लिए वक्त ही नहीं। बच्चों का क्या है, वे तो बोल देंगे हमने थोड़ी बोला था आपको की नौकरी छोड़ो, आपका फैसला था। बच्चे भी गलत नहीं होगें क्यूंकि उनकी भी अपनी जिंदगी है। पर तू इस चीज के लिए बाद में अफसोस करेगी। इससे अच्छा है अपनी पहचान बनाओ कि बाद में कभी अकेलापन महसूस ना हो। अपनी मेहनत से पाया मुकाम इतनी आसानी से नहीं छोड़ना चाहिए। मैं हूं ना तेरी मदद करने के लिए। बच्चे तो चिड़िया की तरह हैं, निकल जाएंगे अपना घोसला बसाने के लिए।"
रमा जी ने बहुत अच्छी तरह से मधु को समझाया। मधु भी धीरे धीरे स्कूल और घर दोनों को संभालने में कुशल ही गई। आज वो भी प्रिंसिपल के पद तक पहुंच गई। बच्चे अपनी जिंदगी बना रहे हैं। आज दिल से मधु ने रमा जी को धन्यवाद दिया।
दोस्तों, आपकी क्या राय है? क्या औरत के लिए मां ही रहना जरूरी है? या साथ साथ अपनी पहचान बनाना भी?
धन्यवाद।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
One of the best lines
Please Login or Create a free account to comment.