"अरे जेठानी जी बड़े दिनों बाद फोन किया ।याद नहीं आती क्या हमारी। "रोमा ने अपनी जेठानी मीनल से कहा।
"याद तो आती है,पर अभी ऑफिस का काम भी घर से करना है तो ये भी ऑफिस नहीं जाते, और बच्चे भी स्कूल नहीं जाते तो पूरा दिन भागदौड़ में निकल जाता है।"मीनल में उतर दिया
"आपके कैसी भागदौड़ जेठानी जी,थकते तो हम है।आप तो अकेले रहती है ।सास ससुर तो मेरे पास रहते है ,आप के तो मजे है काम किया तो किया नहीं तो नहीं।"रोमा ने तंज कसा।
"ऐसी तो कोई बात नहीं है रोमा,घर में काम तो करना ही पड़ता है किसी के कम तो किसी के ज्यादा।
बस मैंने तो तो ये बताने के लिए फोन किया था कि अगले रविवार हम अम्मा जी से मिलने आ रहे है। देखो ना 3 महीने हो गए मिले हुए ।"
"अच्छा ठीक है, मैं बता दूंगी अम्मा को।अभी मैं फोन रखतीं हूं, सैकड़ों काम है घर के ।"रोमा ने जल्दी से फोन पटक दिया।
अम्मा जी के दो बेटे बहू है। बड़ी बहू मीनल मुंबई में रहती है,वहीं छोटी बहू रोमा अपने सास ससुर के साथ कानपुर में रहती है।
कानपुर में पुस्तैनी घर है और कपड़े का व्यापार है जिसे ससुर जी और छोटा बेटा देखता है। काम काज के वजह से सास सासू मुंबई नहीं जा पाते अपने बड़े बेटे के पास।इसी बात की खिज रोमा को रहती है। कि उसे तो सास ससुर के साथ रहना पड़ रहा है और जेठानी जी तो मज़े करती है।
लेकिन इसके विपरीत ऐसा कुछ भी नहीं था।एक तो मुंबई जैसे शहर की तेज जिंदगी उपर से मंहगाई।
मीनल जब भी रोमा को फोन करती हमेशा रोमा उसे यही कहती आपके क्या काम है ।जबकि मीनल सोचती सुबह उठने से लेकर सोने तक एक मिनट नहीं मिलता आराम करने को।
सुबह सब से पहले उठना ,घर साफ करना बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना ।सबके टिफिन बनाना।सुबह के वक्त तो सांस लेने की भी फुर्सत नहीं है।
फिर छोटी बेटी अभी एक साल की है तो उसके काम तो ख़तम ही नहीं होते।एक काम खत्म करती है तो वो दूसरा बिखेर देती है।कभी कभी तो नहाने में ही दोपहर हो जाती है।
फिर घर का राशन सब्जी लाना।बेटे के स्कूल के प्रोजेक्ट क्या क्या नहीं करना पड़ता।
साफ सफाई तो जितना करों उतना कम ।अकेले रहने का मतलब ये तो नहीं हम आराम पसन्द हो गए है।
खेर अगले इतवार मीनल अपने पति ओर बच्चों के साथ ससुराल कानपुर आतीं है।
अम्मा जी और पिता जी अपने पोते पोति को देख बहुत खुश हो जाते है।
सभी साथ में खाना खाते है ।
"रोमा तुमने बहुत अच्छा खाना बनाया है,बहुत स्वाद है खाने में"मीनल ने रोमा से कहा।
"अब क्या करें जेठानी जी ,हमारा घर ही होटल है।अब आप तो बड़े शहर में रहती है जब चाहे खाना बाहर खा सकती है या मंगा सकती है,आपको कौन रोकने टोकने वाला है।"रोमा ने आंखे घुमाते हुए कहा
"क्यों बहुरिया,तुझे किस चीज की रोक टोक है,तेरी जीभ पर लगाम ना रखूं तो तू तो दिन रात ठेले वाले की कचौरी खाती मिले।याद नहीं पिछली बार जब बीमार पड़ी थी वो तला भुना खा कर ।अच्छी चीज खाने से तो मैंने कभी नहीं रोका तुझे।"अम्मा जी ने रोमा को कहा।
"नहीं नहीं अम्मा जी मैं तो बस ऐसी ही बोल रही थी ।जाती हूं ,रसोई समेट देती हूं।"
"मैं भी आती हूं रोमा दोनों मिल कर काम कर लेते है।जल्दी हो जाएगा"। मीनल ने कहा।
"नहीं नहीं जेठानी जी।मुझे तो बहुत काम करने की आदत है आपको इतनी आदत कहां।"रोमा ने टका सा जवाब दे दिया।
मीनल को रोमा की बातों का बहुत बुरा लगा।
अगले दिन सुबह जब मीनल उठी तो देखा।सुबह सुबह की बासी झाड़ू अम्मा जी लगा रही है।तो मीनल ने जाकर उनसे कहा"अम्मा जी मैं कर देती हूं।क्या हुआ आज कल बाई आती नहीं क्या"
"अरे बाई तो दोपहर के दो बजे आएगी।उससे पहले पूजा पाठ करेंगे तो एक बार की झाड़ू में खुद ही लगा लेती हूं।"
"अच्छा। दीजिए मैं कर देती हूं।"
"ठीक है तो ये तू कर रही है तो मैं पराठों के लिए आटा लगा दूं ,वो रोमा को आया गुथना पसंद नहीं ना।"
जब तक रोमा नहा धोकर आती है,तब तक अम्मा जी झाड़ू पूजा पाठ और थोड़ी बहुत नाश्ते की तैयारी कर के रखती है।
घर की सब्जी राशन लाने की जिम्मेदारी ससुर जी के उपर है ।
रोमा का बेटा तो दो साल का है वो तो पूरा दिन अम्मा जी के पास ही रहता है।उसे नहलाना खिलाना सुलाना सब अम्मा जी ही देखती है।
बाकी कामों के लिए काम वाली आती ही है।
मीनल अम्मा जी से कहती है ,"अम्मा जी अभी थोड़े दिनों के लिए आप हमारे साथ ही चलिए।अभी तो ससुर जी के भी दुकान में ज्यादा काम नहीं है।तो आप आ सकते है। और रोमा को भी थोड़ा आराम करने दीजिए।"
अम्मा जी समझ जाती है कि मीनल ऐसे क्यूं बोल रही है।वो भी साथ जाने के लिए मान जाती है।
रोमा तो खूब खुश होती है ,अब आराम से लेट तक उठेगी जो जी चाहेगा वो करेगी।बहुत कुछ सोच लिया था रोमा ने !
अम्मा जी और ससुर जी दोनों मुंबई आ जाते है।मीनल भी खुश थी कि चलो अब रोमा को अकेले कैसे रहना होता है पता चलेगा।
मीनल अम्मा जी से कोई काम नहीं कराती लेकिन अम्मा जी अपने मन से ही कभी सब्जी काट देती।कभी कपडे लगा देती। छोटे छोटे काम में मदद कर देती।
बच्चे भी अपने दादा दादी के साथ बहुत मजे करते।पहले मोबाइल में ही घुसे रहते थे लेकिन अब बहुत कम होगया जिससे मीनल बहुत संतुष्ट थी।
दूसरी तरफ रोमा की जिंदगी उथल पुथल हो गई।एक दो दिन तो बहुत आराम से निकल गए ।लेकिन जब पानी भरने के लिए जल्दी उठना पड़ता तो बड़ी दिक्कत होती।पहले तो अम्मा जी जल्दी उठ के सुबह का काम कर देती थी लेकिन वहीं काम अब रोमा को करने पड़ रहे थे।
उपर से बच्चों को संभालना तो ओर भी मुश्किल काम था।रोमा ने तो कभी अपने बेटे को नहलाया खिलाया ही नहीं,अम्मा जी ही करती थी तो उसके लिए ये सब नया था।ओर रोमा का बेटा भी अपनी दादी के बिना चिड चिडा होगया।
घर का राशन सब्जी लाना सब अब रोमा को खुद करना पड़ता।फ्रिज में क्या खराब हो रहा है,सब देखना पड़ता।
ऐसे में रोमा बहुत परेशान हो गई।ओर हार कर उसने अम्मा जी को फोन किया "अम्मा जी अब वापिस भी आजाओ"
क्यूं क्या हुआ बहुरिया तुझे तो अकेले रहना था ना।
"हां अम्मा जी ,रहना तो था पर अब नहीं रहना।मुझसे ये घर अकेले नहीं संभलता।"
"तू तो कहती थी ना अकेले रहने में मजे है।"
"अम्मा जी मैं जेठानी जी से भी माफी मांग लूंगी अब आप मुझे और शर्मिंदा ना करो।"
"अरे रोमा तुम्हें मुझसे माफ़ी मांगने की कोई जरूरत नहीं है ।ना ही तुम्हारी कोई गलती ।बहुत लोगों को लगता है जो अकेले रहते है उनके क्या काम ।पर ऐसा नहीं है,अगर सभी मिल जुल कर काम करे तो साथ रहना ही अच्छा होता है।चाहे अकेले रहें या साथ अगर एक अकेली बहू पर पूरे घर की जिम्मेदारी डाल दी जाए तो वो थकेगी ही,ये तो हमारी किस्मत अच्छी है जो हमारी सास हमारे काम में मदद कर देती है।
वरना जो अकेले रहते है उनके काम भी कम नहीं होते।
हां जेठानी जी आप बिल्कुल सही बोल रही है।
रोमा को अपनी गलती समझ आयी ओर बाद में कभी उसने ये नहीं कहा जेठानी जी आपके काम ही क्या है।
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