"बड़ी बहू अब तुम सास बन गयी हो, कुछ तो सास जैसा रौब दिखाया करो! कहाँ है तेरी नई नवेली बहू? अभी तक सो रही है क्या? और तू यहां काम पर लगी है!"
"हां माँ जी सो रही है, ठीक है ना 6 ही बजे हैं, उठ जाएगी| वैसे भी उसे मायके में भी लेट उठने की आदत है, इतनी जल्दी आदतें नहीं बदलती और वैसे भी मुझे तो कोई समस्या नहीं उसके उठने से| अपनी प्रीति, वो भी तो 9 बजे उठती है!"
"वो बेटी है, जब मर्जी तब उठे| बहु को तो उठना ही चाहिए! इतनी भी छूट मत दे, तू भी तो उठती थी!"
"हां माँ जी उठती थी पर आपके डर के मारे, वरना नींद तो मुझे भी बहुत आती थी| बस यही चाहती हूं वो डर मेरी बहु को ना लगे मुझसे| और वैसे भी पूरे दिन का काम वो ही करती है, मुझे तो कुछ करने ही नहीं देती|"
"ठीक है ठीक है, इतनी तरफ़दारी ना कर अपनी बहू की, ऐसा ना हो बाद में पछतावा हो|"
विमला देवी ने अपनी बड़ी बहू को काफी दबा के रखा एक कड़क सास की तरह और अपनी बहू शालिनी से भी यही उम्मीद कर रही है कि वो भी अपनी बहू को दबा कर रखे| लेकिन शालीनी जी अपनी बहू जूही को पलकों पर बिठा कर रखती है| वो जूही को कोई भी ऐसी पीड़ा नहीं देना चाहती जिससे वह खुद गुजरी है| शालीनी जी अपना वक्त याद करती है तो आज भी पलकें गीली हो जाती हैं| कैसे सुबह चाहे सर्दी हो या गर्मी, 4 बजे तड़के उठना है तो उठना है| कभी कोई चूक हो जाए तो दुनिया भर के दिल को छलनी करने वाले तानों का सामना करना पड़ता था| मायके जाने के लिए तरस जाते थे|
"मम्मी जी आप परेशान लग रही हैं?"
"अरे जुही बेटा उठ गयी? नहीं मैं कोई परेशान नहीं हूं| अब तो तू आ गयी, मुझे क्या परेशानी?"
"तो बताइए मम्मी जी नाश्ते में क्या बनाऊँ? और दादी जी के लिए दलिया बना दूं?"
"नाश्ता तो मैंने बना लिया है, तू दलिया बना कर दादी जी को दे आ फिर तू भी नाश्ता कर ले|"
"दादी जी आपके लिए दलिया लायी हूँ" जूही ने दादी जी के पैर छू कर कहा|
"उठ गयी? घर की बहू को सबसे पहले उठना चाहिए| पूजा पाठ करना चाहिए ये ही हमारे घर की रीत है|"
"तो मैं भी तो इस घर की बहू ही हूँ माँ जी" शालीनी जी ने कहा| "मैं सुबह उठ कर पूजा कर देती हूँ| आज के बच्चे 4 बजे नहीं उठ सकते| मुझे तो आदत हो गई है| जा जूही तू नाश्ता कर फिर बाज़ार जा कर घर का कुछ सामान ला दे|"
ऐसे ही महीने गुजरते रहे| दादी जी अपनी रीत रिवाज़ का हवाला देती और शालीनी जी उसे दरकिनार कर अपनी बहू को बचा लेती| जूही भी शालीनी जी को उतना ही मान देती| कोई देख कर कह ही नहीं सकता माँ बेटी है या सास बहू| जूही को 7वा महीना शुरू हो गया था| शालीनी जी चाहती थी कि जूही की डिलीवरी ससुराल में ही हो| लेकिन दादी जी का कहना था बच्चा पीहर में ही होगा यही हमारे घर की परंपरा है|
"बड़ी बहू तू भी तो पीहर गयी थी, तो फिर जूही को क्यूँ नहीं भेज रही? इसका खर्चा मायके वालों का ही होता है, ससुराल वालों का नहीं|"
"ऐसी कोई रीत नहीं है माँ जी| जाना तो मैं भी नहीं चाहती थी, अपने पति के पास रहना चाहती थी| जूही भी उस समय अपने पति के पास, यहां अपने घर में रहना चाहती है तो फिर इसमें दिक्कत क्या है? पहले के जमाने में एक तो छोट्टी उम्र में शादी हो जाती थी और सास का भी इतना शंका और शर्म रहता था कि अपनी तकलीफ कह नहीं पाती थी इसलिए बहु की सुविधा के लिए उसे मायके भेज देते थे| लेकिन जूही बेटी ही है मेरी वो अपने पति के पास रहना चाहती है तो वैसा ही होगा|"
"तो तू अपनी बहू की सेवा करेगी, उल्टी गंगा बहाएगी|"
"करूंगी सेवा, इसमें गलत क्या है? मुझे डेंगू हुआ था तो कितनी सेवा की थी मेरी! और एक भी दिन ऐसा नहीं गया है जब आपके पैर ना दबाए हों जूही ने| फिर वो इस घर के बच्चे के लिए इतनी तकलीफ उठा रही है तो मैं इतना तो कर ही सकती हूं| यही ऐसा वक्त होता है पूरी जिंदगी में जब एक बार ही तो बहु को अपनी सास की जरूरत होती है| बाकी पूरी जिंदगी तो बहु परिवार की जरूरतों को पूरा करने में लगी रहती है| इस वक्त की यादें खट्टी मीठी जैसी भी हों, जिंदगीभर याद रहती हैं| मैं अपनी बहू को मीठी याद देना चाहती हूं|"
थैन्क यू माँ, आप मुझे कितने अच्छे से समझती हो|" ऐसा बोल कर जूही शालीनी जी के गले लग गयी|
"अरे पागल मैं तो अपना फायदा देख रही हूँ, आज मैं तेरी सेवा करूंगी फिर जिंदगी भर तेरे से करवाउंगी|"
ऐसा कह कर दोनों हंस पड़े|
धन्यवाद
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©️®️ वर्षा अभिषेक जैन
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