आ-चरण प्रणाम पत्र
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कालू जब 'दशवीं' कक्षा पास किया तो दूसरे स्कूल में नाम लिखवाने के लिए आ- चरण प्रमाण पत्र की आवश्यकता महसूस हुई।
पत्र की वजह से दूसरे स्कूल वालों ने नाम लिखने से मना कर दिया था। वह पुराने स्कूल के प्रिंसिपल से इस सिलसिले में मिलने पहुंचा और उपयुक्त कारण बता दिया।
प्रिंसिपल महोदय ने कहा-पहले अपने बारे में अपने पिता जी से लिखबा कर लाओ तो मैं प्रमाण पत्र बना दूंगा। कालू क्यों सर? मेरे बारे में क्या नहीं जानते आप इतने सालों से पढ़ा रहे हैं।
प्रिंसिपल साहब पढ़ाई के अलावा कुछ नहीं।कालू के पिता जी अनपढ़ थे लेकिन कुशल चित्रकार थे। कालू ने अपनी व्यथा जब अपने पिता जी को सुनाई तो वे दुखी हुए लेकिन बोले रूक मैं कुछ करता हूॅं। वे वोले तुम्हारे पास कागज़ पेंसिल है कालू ने सहर्ष कागज का एक टुकड़ा और पेंसिल दे दिया।
कालू के पिता जी ने उस कागज पर बड़े इत्मीनान से कालू का एक ऐसा चित्र बनाया जिसमें उसके पांव स्पष्ट दिखाई दे और उसके बाद कालू को बोले अब इस चित्र के नीचे लिख मैं कालू का पिता यह घोषणा करता हूॅं कि मेरा बेटा रंग रूप में भले ही काला कलूटा है लेकिन दिल का बहुत साफ है और इसके आ-चरण के क्या कहने पांव भले ही काला है मगर तलवे बिल्कुल साफ है। इति कालू का पिता कालूराम।
कालू वह चित्र लिए स्कूल पहुंचा तब वह हांफ रहा था प्रिंसिपल महोदय से वोला सर ये लिजिए मेरे पिता जी का लिखा आ-चरण प्रणाम पत्र और मेरा आ-चरण प्रमाण पत्र बना दिजिए। प्रिंसिपल साहब उस आ-चरण प्रणाम पत्र को देखने के बाद दांतों तले उंगली दबाते बोले कुछ देर प्रतीक्षा करो अभी लगे हाथों बनाए देता हूॅं। कालू की बांछे खिल गई। कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।
लेखक:-भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
©भुवनेश्वर चौरसिया भुनेश
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बहुत खूब
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