कूद आ नीति

Vyangy

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Bhubaneswar Chaurasiya
Bhubaneswar Chaurasiya 12 Jul, 2020 | 1 min read

एक व्यंग्य रचना

कूद आ नीति

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टेलीविजन स्क्रीन नेता जी के द्वारा अपनाए गए कूटनीतिक चालों का क्रम बार ब्योराओं से लवालब भरा हुआ था। नेता जी ने किन बिकट परस्थितियों का सामना करते हुए सफलता पाई वगैरा वगैरा। कभी बीच बीच में एकाध पत्तलकार तो कभी नेताजी मुस्कुरा देते। नेटवर्क की समस्या थी तो गोलू के पिता जी समाचार ठीक से नहीं सुन पा रहे थे।गोलू बार बार ऐंटिना हिला कर आ जाता। रिजल्ट वही ढाक के तीन पात। उबते हुए गोलू बोला रहने दो पिता जी अब कोई फायदा नहीं है। मैं थक गया हूॅं‌ ऊपर नीचे करते-करते कभी सीढ़ियों से छत के ऊपर तो कभी छत के नीचे। पिता जी ऐसा क्यों नहीं करते की ऐंटिना को भी टेलीविजन के साथ ही क्यों नहीं खड़ा कर देते। जैसे कूट के साथ नीति जुड़ा हुआ है टंटा ही खत्म। बार बार कूट आ नीति आखिर है क्या यह? पिता जी ने डंडा उठाया और कस के दो डंडा निरपराध गोलू को जड़ दिए। गोलू बड़ा सा मुंह बनाकर लेट गया अरे मम्मी मार दिया रे। गोलू की मां भागी आई क्या हुआ क्या हुआ? गोलू के पिता जी ने कहा समझा दो अपने लाडले को इतने सालों से स्कूल जा रहा है पर इसे कूटनीति तक पता नहीं बार बार कहता है कूदनीति। पूछो इससे कह रहा है कूट और नीति को एक साथ जोड़ दूं टंटा खत्म कभी नमक और चीनी दोनों एक साथ एक ही जाड़ में रह सकता है। जरा सा समाचार ही तो सुन रहे थे तो छोटा सा काम दिया ऐंटिना घुमा दे लेकिन वो भी ठीक से नहीं कर पाया। ऊपर से बार बार कहता है बड़ा होकर अपने पिता जी के जैसे नेता बनूंगा अगर इसको मेरे जैसे बनना है तो कूट और नीति अलग अलग सीखना होगा। ताकि बड़ा होकर लोगों को बहकाबे में ला सके नहीं तो कुर्सी तो क्या जमीन पर बैठने के लायक नहीं रहेगा।अब देखो हमारे देश में कूट नीति ने क्या-क्या रंग दिखाएं हैं। कभी कागजों में कोरोना के मरीज बढ़ जाते हैं तो कभी डाक्टर और नर्स कभी अस्पतालों की संख्या बढ़ घट जाती है। कभी चीन भारतीय जमीन पर कब्जा कर लेता है तो कभी भारत बुद्धु कहीं का इतना भी नहीं समझता गोलू अभी भी पीठ सहला रहा था। और बीच-बीच में अपनी मां से कह रहा था पढूंगा तो अब उसी स्कूल में जिसमें कभी पिता जी पढ़ते थे ताकि कूद आ नीति ठीक से सीख सकूं आं आं आं आं। उधर पिता जी का गुस्सा नेटवर्क की वजह से सातवें आसमान पर था कि तभी टेलीविजन नेटवर्क सेटेलाइट संपर्क से जुड़ गया। लेकिन पत्तलकार के हकलाने की आवाज आ रही थी जिससे असली मुद्दे का पता नहीं चल पा रहा था। गोलू के पिता जी ने मुद्दे को वहीं ठंडे बस्ते में डालते हुए कहा कहीं घरसे बाहर निकलो तो ये मत कह देना कि हमारे टेलीविजन में नेटवर्क की कोई समस्या है। और साफ और स्पष्ट कहना कूटनीति होता है कूदनीति नहीं समझे।

©भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"


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  • Kumar Sandeep · 5 years ago last edited 5 years ago

    शानदार व्यंग्य??

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