दर्द जब भी गुजरता था हद से मेरे,लब से लब बाँसुरी बन मिलाती रही…उंगली से यूँ लिपटकर ये मेरी कलम ,इक अधूरी ग़ज़ल गुनगुनाती रही।।

This poem is about my PEN who supported me in my bad days. Even when i have no hope then also my Pen describe my pain on a page honestly. My pen is like my real friend which is a part of my life.

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Bajrang
Bajrang 11 Aug, 2019 | 1 min read

अश्क़ गिरते रहे,याद आती रही…

उंगली से यूँ लिपटकर ये मेरी कलम ,इक अधूरी ग़ज़ल गुनगुनाती रही।।

अश्क़ गिरते रहे,याद आती रही…


अपनों, सपनो को पाने में गिरता रहा,फिर भी हर वक़्त हमको उठाती रही।

दर्द जब भी गुजरता था हद से मेरे,लब से लब बाँसुरी बन मिलाती रही…

उंगली से यूँ लिपटकर ये मेरी कलम ,इक अधूरी ग़ज़ल गुनगुनाती रही।।


हिस्सा होकर भी जो किस्सा बनता गया,गीत उसके ही बस ये सुनाती रही।

टूटे ख्वाबों से ये भीगती ही रही,ख़्वाब हमको नए ये दिखाती रही..

उंगली से यूँ लिपटकर ये मेरी कलम ,इक अधूरी ग़ज़ल गुनगुनाती रही।।


रात की खामोशियों में तन्हा थे जब,खुद भी चलती रही और चलाती रही।

घेर रखा था मुझको अंधेरों ने जब,दीप बन रास्ता ये दिखाती रही…

उंगली से यूँ लिपटकर ये मेरी कलम ,इक अधूरी ग़ज़ल गुनगुनाती रही।।


चाँदनी जब भी मुझको जलाती रही, चाँद मुझको एक वो दिखाती रही।

तारे -तारे जोड़कर वो मुझको एक ,धुँधला सा चेहरा दिखाती रही…

उंगली से यूँ लिपटकर ये मेरी कलम ,इक अधूरी ग़ज़ल गुनगुनाती रही।।

अश्क़ गिरते रहे,याद आती रही…


-Bajrang Prasad


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