NGO और सूचना का अधिकार-

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Baikunth prasad
Baikunth prasad 08 Oct, 2019 | 1 min read

गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) क्या हैं

  • विश्व बैंक ने एनजीओ यानी गैर-सरकारी संगठनों को कुछ इस तरह से परिभाषित किया है। ऐसे निजी संगठन जो लोगों का दुख-दर्द दूर करने, निर्धनों के हितों का संवर्द्धन करने, पर्यावरण की रक्षा करने, बुनियादी सामाजिक सेवाएँ प्रदान करने अथवा सामुदायिक विकास के लिये गतिविधियाँ चलाता हो एनजीओ कहलाते हैं। ऐसी संस्थाओं को अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है जैसेसिविल सोसायटी आर्गेनाइजेशन, निजी स्वैच्छिक संगठन, चैरिटी, नॉन प्रॉफिट चैरिटीज, चौरिटेबल आर्गेनाइजेशन थर्ड सेक्टर आर्गेनाइजेशन इत्यादि।

आरटीआई एक्ट के दायरे में एनजीओ को लाने की आवश्यकता क्यों

  • देश भर में ऐसे गैर सरकारी संगठनों की संख्या काफी बढ़ी है जिन्हें सरकारी महकमों से अनुदान लेने में कोई हिचक नहीं होती. लेकिन उसके ब्यौरे में पारदर्शिता बरतना उन्हें जरूरी नहीं लगता। बल्कि इस कानून से मुक्त होने की उम्मीद में ही शैक्षणिक संस्थानों को संचालित करने वाले कुछ एनजीओ, कई स्कूल-कॉलेज और संगठनों ने शीर्ष अदालत में दावा किया था कि एनजीओ आरटीआई कानून के दायरे में नहीं आते हैं।
  • हालांकि सूचना का अधिकार कानून में यह प्रावधान मौजूद है कि सरकार से सहायता लेने वाले एनजीओ और अन्य संस्थानों को अपनी आय से संबंधित सारी जानकारी अपनी वेबसाइटों पर सार्वजनिक करनी होंगी। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद यह साफ हो जाना चाहिए कि अगर कोई एनजीओ सरकार से भारी पैमाने पर अनुदान लेता है या स्कूल-अस्पताल जैसे संस्थानों का संचालन करता है तो आम लोगों को उसके समूचे तंत्र के स्वरूप, खर्च से लेकर संचालन या नियमावली आदि के बारे में जानने का हक है।
  • सरकारी विभागों के तमाम कार्यो की जिम्मेदारी गैर-सरकारी संगठनों को दी गई है। इन कार्यों में समाज कल्याण, शिक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य का क्षेत्र प्रमुख है। सरकार ने यह जिम्मेदारी गैर-सरकारी संगठनों पर भरोसा करके सौंपी है लेकिन सच यह है कि इस भरोसे का हाल बेहद खराब है।
  • सरकार शायद बेहतर कार्य के लिए इनकी मदद लेती है लेकिन तमाम ऐसे गैर-सरकारी संगठन अर्थात एनजीओं हैं जिनका अस्तित्व महज कागजों तक ही सीमित है।

सुझाव

  • गैर सरकारी संगठन समुदायों को सबल बनाते हैं, इसलिये उनके दमन को नहीं बल्कि उन्हें समर्थन देने की आवश्यकता है। अगर किसी के पास एक असहमत दृष्टिकोण है तो इसका आशय यह नहीं है कि वह देश का शत्रु है।
  • ऐसे में सरकार और गैर सरकारी संस्थाओं को भागीदार के रूप में कार्य करना चाहिये और साझा लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये पूरक की भूमिका निभानी चाहिये जो परस्पर विश्वास व सम्मान के मूल सिद्धांत पर आधारित हो और साझा उत्तरदायित्व व अधिकार रखता हो।
  • सरकार या विदेश से अनुदान लेने वाली एनजीओ की निगरानी के लिए एक कमेटी बनाई जानी चाहिए जिसमें समाज के प्रतिष्ठित व ईमानदार लोग, एक प्रशासनिक अधिकारी वन्यायिक अधिकारी को रखा जाए।
  • कमेटी के सदस्यों को छह-छह माह में बदला जाना चाहिए ताकि कमेटी द्वारा किये गये कार्य, रुपये के उपभोग का ब्यौरा तथा लाभ लेने वालों का वैरीफिकेशन किया जा सके।
  • सही काम नहीं करने वाली संस्थाओं को ब्लैक लिस्ट किया जाना चाहिए।
  • ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन से जहाँ भ्रष्टाचार पर अंकुशलगाया जा सकता है वहीं कागजात की प्रक्रिया भी सरल हो जाएगी। इसके अलावा एनजीओ का भौतिक सत्यापन कराया जा सकेगा।
  • बेहतर मानव संसाधन विकास और संगठन के भीतर प्रबंधकों, प्रशासकों, परियोजना कर्मियों, बोर्ड सदस्यों, लाभार्थियों, सदस्यों व स्वयंसेवकों का प्रशिक्षण किया जाए।

निष्कर्ष

गैर सरकारी संगठनों, स्वैच्छिक संस्थाओं व स्वयं सेवी संगठनों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयास सराहनीय हैं लेकिन जरूरत व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास की है|


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