टेलीस्कोप

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Baikunth prasad
Baikunth prasad 09 Oct, 2019 | 1 min read

परिचय

सदियों से मानव अंतरिक्ष के बारे में जानने को उत्सुक रहा है। इसीलिए ‘खगोलशास्त्र’ (Astronomy) को प्राचीनतम वैज्ञानिक विषयों में से एक माना जाता है। खगोलशास्त्र, अंतरिक्ष से संबंधित विज्ञान की एक शाखा है। एस्ट्रोनॉमी (Astronomy) शब्द ग्रीक के 'Astron' और 'Nomo' से मिलकर बना है। 'Astron' शब्द तारा (Star) को और 'Nomo' शब्द ‘नियमों’ (Laws) को संदर्भित करता है। इस प्रकार एस्ट्रोनॉमी (खगोलशास्त्र) का तात्पर्य ‘तारों के नियमों’ से है अर्थात् खगोलशास्त्र में खगोलीय पिण्डों की संरचना, गति और उत्पत्ति आदि के बारे में अध्ययन किया जाता है।



टेलीस्कोप

टेलीस्कोप एक ऑप्टिकल उपकरण (Optical Instrument) है, जिसका उपयोग दूर की वस्तुओं को आवर्धन (Magnification) प्रदान करने हेतु किया जाता है। टेलीस्कोप में कई लेंसों की व्यवस्था होती है जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन (यथा-रेडियो तरंगें आदि) का उपयोग करके दूर की वस्तुओं को बड़ा अथवा आवर्धित करती है ताकि उनका निरीक्षण किया जा सके। पहली बार टेलीस्कोप की खोज 17वीं शताब्दी में नीदरलैण्ड में हुई थी, जिसमें काँच के लेंसों का उपयोग किया गया था। इसके द्वारा खगोलीय पिण्ड एवं पृथ्वी दोनों का निरीक्षण किया गया था।


टेलीस्कोप का वर्गीकरण

टेलीस्कोप का वर्गीकरण विभिन्न आधारों पर कई प्रकार से किया जा सकता है-

  1. अवस्थिति (Location): अवस्थिति के आधार पर टेलीस्कोप का वर्गीकरण किया जाता है, जैसे- ग्राउंड टेलीस्कोप, स्पेस टेलीस्कोप आदि।
  2. अपवर्तन एवं परावर्तन (Refraction & Reflection): प्रकाश में अपवर्तन एवं परावर्तन दोनों के गुण होते हैं, जो टेलीस्कोप अपवर्तन के गुण का उपयोग करती हैं उन्हें ‘अपवर्तक टेलीस्कोप’ और जो परावर्तन के गुण का उपयोग करती हैं उन्हें ‘परावर्तक टेलीस्कोप’ कहा जाता है। कुछ टेलीस्कोप ऐसी भी होती हैं जो प्रकाश के उपर्युक्त दोनों गुणों का उपयोग करके दूर स्थित वस्तु का आवर्धन करती हैं, इन टेलीस्कोप को ‘कैडिओप्ट्रिक (Cadioptric) टेलीस्कोप’ कहा जाता है।
  3. विद्युत चुम्बकीय विकिरण (Electro Magnetic Radiation): वर्तमान में टेलीस्कोप की क्षमता इस बात से आँकी जाती है कि वह विभिन्न आवृत्ति बैंड (Frequency Band) के विद्युत चुम्बकीय विकिरण को किस प्रकार से पकड़ (Catch) पाती है। टेलीस्कोप को अलग-अलग आवृत्ति बैंड के विद्युत चुम्बकीय विकिरण को पकड़ने के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है-
  • एक्स-रे टेलीस्कोपः एक्स-रे टेलीस्कोप ‘एक्स-रे’ (X-ray) के द्वारा दूर स्थित खगोलीय पिण्ड का निरीक्षण करती है अर्थात् यहाँ ‘एक्स-रे प्रकाशिकी’ का उपयोग होता है। विद्युतचुम्बकीय विकिरण में एक्स-रे का तरंगदैर्ध्य ‘पराबैंगनी प्रकाश’ (Ultraviolet Light) की तुलना में कम होता है।
  • ˆपराबैंगनी टेलीस्कोपः ये टेलीस्कोप पराबैंगनी प्रकाश का उपयोग करती हैं, जिसकी तरंगदैर्ध्य दृश्य प्रकाश (Visible light) से कम होती है।
  • ˆऑप्टिकल टेलीस्कोपः ये टेलीस्कोप दृश्य प्रकाश का उपयोग करती हैं। ˆ
  • इन्फ्रारेड टेलीस्कोपः इसमें इन्फ्रारेड तरंग या प्रकाश का उपयोग होता है। इन्फ्रॉरेड प्रकाश की तरंगदैर्ध्य, दृश्य प्रकाश से अधिक होती है।
  • रेडियो टेलीस्कोपः यह टेलीस्कोप रेडियो तरंगों का उपयोग करती है। रेडियो तरंगों की तरंगदैर्ध्य ‘इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम’ में सबसे अधिक होती है, जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि अभी हाल ही में रेडियो तरंगों को ही ‘फास्ट टेलीस्कोप’ ने पकड़ा है।

टेलीस्कोप के फायदे

वर्तमान में टेलीस्कोप के कई फायदे हैं अर्थात् मानव इनका भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में उपयोग कर रहा है, यथा-खगोलशास्त्र में उल्लेखनीय अन्वेषण, स्वास्थ्य, शिक्षा, पृथ्वी के संसाधनों की मॉनिटरिंग एवं खोज, आपदा प्रबंधन इत्यादि। लेकिन हम इस लेख में टेलीस्कोप के खगोलीय क्षेत्र में उपयोग पर ज्यादा ध्यान केन्द्रित करेंगे-

  • टेलीस्कोप के द्वारा कई प्रकार की अहम खगोलीय जानकारियाँ जुटाई जा रही हैं, जैसे चीन की फास्ट नामक टेलीस्कोप के द्वारा अब तक करीब 44 प्रकार के नये पल्सर खोजे जा चुके हैं। गौरतलब है कि पल्सर तेजी से घूमने वाला न्यूट्रॉन तारा होता है जो इलेक्ट्रॉमैग्नेटिक रेडिएशन उत्सर्जित करता है।
  • टेलीस्कोप हमारे सौरमण्डल की उल्लेखनीय जानकारी तो उपलब्ध कराता ही है। इसके अतिरिक्त, डीप स्पेस में उपस्थित अन्य महत्वपूर्ण खगोलीय पिण्डों की विद्युत चुम्बकीय विकिरण के माध्यम से उपयोगी सूचनाएँ एकत्रित करता है। यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि विद्युत चुम्बकीय विकिरण का संचरण माध्यम पर निर्भर नहीं करता है और यह समय व अन्य कारकों (यथा-दूरी आदि)के द्वारा प्रभावित नहीं होता है अर्थात् विद्युत चुम्बकीय विकिरण के विश्लेषण द्वारा जो आज सूचना प्राप्त की जा सकती है वह हजारों साल के बाद भी उसी रूप में प्राप्त की जा सकती है। चीन के फास्ट टेलीस्कोप द्वारा जो अभी रेडियो तरंगे प्राप्त हुई हैं, उनके बारे में बताया जा रहा है कि वे स्रोत से काफी पहले उत्पन्न हुयी होंगी क्योंकि इस स्रोत की पृथ्वी से दूरी लगभग तीन बिलियन प्रकाश वर्ष की दावेदारी की जा रही है।
  • अभी ब्रह्मांड की उत्पत्ति से संबंधित सर्वाधिक सर्वमान्य सिद्धांत ‘बिग-बैंग’ है, किन्तु इस सिद्धांत में कई खामियाँ हैं और ब्रह्मांड के रहस्यों के बारे में सीमित तौर पर व्याख्या कर पाता है। इस स्थिति में यदि टेलीस्कोप आदि से ब्रह्मांड के बारे में वैज्ञानिक जानकारियाँ जुटाई जायेंगी तो हमें ब्रह्मांड की उत्पत्ति, विशालता आदि के बारे में भी पता चल पायेगा।
  • कई अंतरिक्ष अन्वेषणों से चन्द्रमा में ‘हीलियम-3’ के भण्डार की मौजूदगी का पता चला है। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि सोलर विंड जब चन्द्रमा की सतह से टकराती है तो इस दौरान ‘हीलियम-3’ गैस चन्द्रमा की सतह में संग्रहित हो जाती है। यदि हीलियम-3 को किसी तरह मानव अपने उपयोग में ला पाता है तो यह गैस मानव के लिए ऊर्जा का असीम संसाधन बन सकती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि अंतरिक्ष में मौजूद विभिन्न खगोलीय पिण्डों का टेलीस्कोप द्वारा डाटा एकत्र करके वहाँ मौजूद संसाधनों का पता लगाया जा सकता है। आगे चलकर मानव धीरे-धीरे तकनीक विकसित करके इन संसाधनों को अपने उपयोग में ला सकता है।
  • सूर्य से आने वाले सौर तूफान (Solar winds) से उपग्रहों को काफी नुकसान होता है। इसी प्रकार डीप स्पेस से आने वाली कॉस्मिक किरणों से हमारे सौरमण्डल को नुकसान होता है। अतः इस नुकसान से बचने के लिए अंतरिक्ष में उपस्थित टेलीस्कोप काफी जानकारी मुहैया कराती है।
  • मानव जीवन का हर क्षेत्र आपस में एक-दूसरे से जुड़ा है, अतः यदि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में हमने टेलीस्कोप के माध्यम से तरक्की की तो अन्य क्षेत्रों को भी उल्लेखनीय रूप से लाभ पहुँचेगा।
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