यदि मनुष्य के हृदय की तुलना करनी हो या उसकी विशेषता बतानी हो तो कहा जाता है कि फला व्यक्ति का हृदय बहुत विशाल है अर्थात ऐसा ह्रदय सुख शांति भाईचारा तथा उदारता से युक्त है|
परंतु आज मनुष्य के हृदय में इन तत्वों का अत्यंत अभाव सा हो गया है मानव ह्रदय हिंसक हो गया है वह तुच्छ जान पड़ता है हिंसा उग्रवाद का रूप ले चुकी है और नारी का अपमान दुष्कर्म आदि पाप कर्मों में वृद्धि हो गई है मनुष्य धर्म के नाम पर अधर्म के रास्ते हो लिया है मनुष्य आज अनाद, शाश्वत एवं अविनाशी वैदिक मार्ग को भूल गया है कुल मिलाकर आज वैदिक संस्कृति का लोप हो गया है|
अब प्रश्न यह है कि महापुरुष कौन है? यदि वेदों की मानें तो वेद विद्या को जानने वाला धर्म अनुष्ठान योगाभ्यास और वैदिक सत्संग द्वारा अपने आत्मा को जानकर परमात्मा को जानने वाला महापुरुष है
परंतु महापुरुष की वर्तमान परिभाषा पर ध्यान दें तो आज का महापुरुष वेद विरोधी वेद ना जानने वाला योग विद्या का अभ्यास ना करने वाला और ईश्वर को ना मानने वाला स्वयंभू संत ही महापुरुष है
परंतु प्रश्न यहां महापुरुष का नहीं एक अच्छे व्यक्ति का है और बुराइयां मनुष्य की विशेषता है यदि मनुष्य में बुराइयां नहीं हो तो वह देवता में गिना जाने लगे "सत्यमेव देवा अनृतं मनुष्य:" अर्थात जो मनुष्य सत्य आचरण रूपी व्रत को धारण करते हैं वह देव कहलाते हैं और जो असत्य का आचरण करते हैं उनको मनुष्य कहते हैं
फिर भी अच्छे मनुष्य में बहुत सारी खूबियां होती हैं "भला किसी का कर न सको तो बुरा किसी का मत करना फूल नहीं बन सकते हो तो कांटे बनकर मत रहना"
अतः एक अच्छा व्यक्ति कभी किसी का बुरा नहीं सोचता और ना ही उसे किसी व्यक्ति में बुराई दिखती है तथा वह सदैव प्रसन्न चित्त रहता है वह सदैव दूसरों को प्रसन्न देखना चाहता है वह सिर्फ खुद के लिए नहीं जीता वह दूसरों के दुख को समझता है सभी की भावनाओं का आदर करता है वह प्राणी मात्र से प्रेम करता है वह सहिष्णु होता है समदर्शी होता है अतः छोटे-बड़े में भेद नहीं करता|
जहां तक सत्यवादी होने का प्रश्न है जैसा कि मैंने ऊपर बताया है असत्य या झूठ मानव मात्र का गुण है तथा कभी-कभी असत्य सत्य से बड़ा महत्व रखता है परंतु फिर भी एक अच्छा व्यक्ति सदैव सत्यवादी होता है एक महापुरुष ही अच्छा व्यक्ति नहीं होता बल्कि किसी महापुरुष के पद चिन्हों पर चलने का प्रयास मात्र करने वाला भी एक अच्छा व्यक्ति हो सकता है
यहां हम बात मनुष्य मात्र की कर रहे हैं फिर चाहे वह किसी भी धर्म समुदाय से संबंध रखता है अतः मैं अपने निजी विवेक से यह कहना चाहूंगा कि एक अच्छा मनुष्य धर्मनिरपेक्ष नहीं होना चाहिए क्योंकि यह हमें अधर्मी बनाता है जो पाप व कष्ट के मार्ग में ले जाता है अतः उसे धर्म नहीं छोड़ना चाहिए हां वह पंथनिरपेक्ष अवश्य हो सकता है|
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.