विषय की शुरुआत ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से करना चाहूंगा
चीन के हजारों वर्ष का इतिहास उतार-चढ़ाव भरा रहा है मैं उस पर टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा परंतु चीन की 19वीं शताब्दी से बीसवीं शताब्दी की घटनाएं 21वीं शताब्दी में चीन की अंतरराष्ट्रीय भूमिका का निर्धारण करती है
यूरोपीय शक्तियों ने चीन को अपना उपनिवेश बनाया और उसके संप्रभुता की बुरी तरह से धज्जियां उड़ाई इन्हीं वर्षों में ब्रिटेन ने चीन के साथ अफीम का व्यापार शुरू किया और चीन की जनता में अंग्रेजो के खिलाफ जनाक्रोश बॉक्सर विद्रोह को एक विस्फोटक संकट बना दिया इस बगावत का बलपूर्वक दमन कर अंग्रेजों ने यह दर्शा दिया कि चीन की हालत ठीक नहीं
परंतु सन यात सेन ने जिस राष्ट्रवादी क्रांति को 1911 में संपन्न किया उसने राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
1905 में रूस को एक सैनिक मुठभेड़ में हराने के बाद जापान में साम्राज्यवादी मानसिकता तेजी से विकसित हुई और जापान में चीनी सीमा का अतिक्रमण करना प्रारंभ कर दिया जापानियों का प्रतिरोध करने में तत्कालीन चीनी सरकार असमर्थ साबित हुई सन यात सेन की मृत्यु के बाद उनके द्वारा स्थापित कू मिन तांग राष्ट्रवादी पार्टी का नेतृत्व च्यांग काई शेख के हाथों में आया जो अमेरिका से प्रभावित थे वह एक शक्तिशाली सेना नायक थे परंतु धीरे-धीरे चीन में गृहयुद्ध की स्थिति बनती गई तथा सन 1945 में माओ के नेतृत्व में साम्यवादियों ने धीरे-धीरे चीन के बहुत बड़े भूभाग पर कब्जा कर लिया तथा च्यांग काई शेख को चीन छोड़कर पड़ोसी द्वीप ताइवान में बसना पड़ा और तब से चीन में साम्यवादी शासन अस्तित्व में आया
हमारे अधिकांश "PAPER WIFF" पाठकों को यह शायद ही पता हो कि चीन दुनिया की सबसे बड़ी आबादी तो है ही साथ ही चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी वह अर्थव्यवस्था है जिसने दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था तथा महाशक्ति अमेरिका को कर्ज दे रखा है चीन अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रखता है वह सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य हैं एनपीपी के अनुसार चीन मान्यता प्राप्त परमाणु सक्ती है, सोवियत संघ के विघटन के पश्चात वह अमेरिकी एक ध्रुवीयता को चुनौती देने वाला प्रमुख देश है तथा महाशक्ति बनने का प्रबल दावेदार है,
भारत के 1947 में स्वतंत्र होने और चीन में 1949 की क्रांति के बाद दोनों देशों में सहयोग की भावना देखी गई 1955-56 का दशक जिसमें हिंदी चीनी भाई भाई वाली गर्मजोशी देखने को मिली तथा दोनों देशों के बीच पंचशील समझौता हुआ और दोनों देशों ने बांडुंग में हुए एफ्रोएशियाई सम्मेलन में भाग लिया
1957-58 तक यह बात स्पष्ट हो चुकी थी कि चीन हिमालय सरहद को विवाद ग्रस्त समझता है और जमीन के लाखों वर्ग किलोमीटर उस भू-भाग को अपना समझता है जिसे ब्रिटिश शासन काल के मानचित्र भारत का अभिन्न अंग समझते रहे हैं अनेक विद्वानों का मानना है कि यह सीमा विवाद ही भारत और चीन के बीच प्रमुख मुद्दा है और जब तक इसका समाधान नहीं होता तब तक दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य होना असंभव है
हलाकी भारत नें उदारता दिखाते हुए तिब्बत पर चीन के अधिपत्य को भी स्वीकार कर लिया लेकिन इसके बाद भी चीन की नीतियों में आक्रामकता बनी रही और वह वन चाइना पॉलिसी को वरीयता देता रहा आगे चलकर जब भारत में फारवर्ड पॉलिसी का अनुसरण किया गया तो चीन ने 1962 में भारत पर आक्रमण कर दिया इस युद्ध में चीन ने भारत के 1 बड़े भूभाग पर भी नियंत्रण स्थापित कर लिया इसलिए 1962 के बाद लंबे समय तक दोनों देशों के बीच स्थाई गतिरोध बना रहा
सन 1962 में भारत चीन युद्ध में भारत की शर्मनाक हार हुई तथा इस युद्ध में तटस्थ देशों ने भारत के बजाय चीन का साथ देना सही समझा तथा इस युद्ध ने यह स्पष्ट कर दिया था कि भारत चीन की बराबरी राजनयिक या सैनिक मोर्चे पर नहीं कर सकता
सन 1962 से 1976 तक के दशकों में चीन ने भारत की घेराबंदी की तथा भारत के पारंपरिक शत्रु पाकिस्तान को अपने साथ लिया तब यह दौर भारत और चीन दोनों ही देशों में राजनीतिक उथल-पुथल वाला था
भारत चीन संबंधों का अगला चरण वह था जिसमें पहले चीन ने आर्थिक उदारीकरण का मार्ग अपनाया और फिर भारत में चीन और भारत दोनों ही अब समाजवादी और साम्यवादी विचारधारा की बेड़ियों से मुक्त होकर आर्थिक विकास का विकल्प चुन रहे थे जहां भारत नें यह काम बेहिचक जनतांत्रिक तरीके से किया वहीं चीन ने आर्थिक उदारीकरण के बावजूद साम्यवादी पार्टी की तानाशाही को जरा भी लचीला नहीं बनाया और तीन चार दशक तक स्थिति यही रही भारत और चीन के बीच सीमा विवाद के निपटारे के लिए वार्ताओं के कई दौर चले पर कोई समाधान नहीं हो सका इसी बात को संतोषजनक समझा गया कि कम से कम छिटपुट घुसपैठ के अलावा कोई टकराव नहीं हुआ
आज चीन जहां भारत का एक बड़ा व्यापारिक साझेदार है वही रिश्तो में तनातनी भी देखने को मिलती रहती है डोकलाम विवाद इसका उदाहरण है इधर हमारे प्रधानमंत्री शी जिनपिंग के साथ झूला झूल रहे होते हैं उधर हमारे सैनिक चीन के सैनिकों के साथ धक्का-मुक्की कर रही होते हैं, सात आठ महीने तक लगातार जारी डोकलाम संकट नें यह बात साफ कर दी थी कि चीन के तेवर सी जिनपिंग के नेतृत्व में नरम नहीं बल्कि जुझारू ही रहने वाले हैं
मित्रों अक्सर यह कहा जाता है कि अमेरिका का राष्ट्रपति दुनिया का सबसे ताकतवर इंसान है मगर हकीकत यह है कि आज चीनी राष्ट्रपति ही दुनिया का सबसे ताकतवर इंसान है अमेरिका भले ही दुनिया का सबसे ताकतवर देश हो मगर जहां तक चीन का प्रश्न है वह अमेरिका या शायद रूस की तुलना में भी कम ताकतवर हो जहां तक शी जिनपिंग का प्रश्न है वह अपने देश में एक छत्र सबसे अधिक ताकतवर नेता है उनकी तुलना अगर किसी से की जा सकती है तो रूस के पूतिन से
कृपया कमेंट करके अपनी राय अवश्य दें कि भारत चीन के साथ अपने संबंध कैसे बेहतर बना सकता है तथा चीन की आक्रामक नीतियों से कैसे निपट सकता है
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