रोऊ अपने दुखदर्दो पर या अतीत समझ के भूलू सब,
जलू प्रतिशोध की अग्नि मे या शंकर बन विश पिलू सब,
छुपाऊ अब भी ज़माने से या उगल दू अपनी बातें सब,
खड़ा रहूं फ़ौलाद बनकर या आंसू संग बह जाऊ अब,
जिसको माना था अपना बदल चुके है वो भी सब,
किसके आगे धोग लगाऊ बड़ों में कहां बड़प्पन अब,
कौन बड़ा है कौन है छोटा आए एक ही घेरे में सब,
तुला कि डंडी एक तरफ ही किसको बाट से तोलू अब।
अविनाश जोशी
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Dhanyavaad 🙏🙏
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