चॉकलेट डे पर चॉकलेटी लड़के को समर्पित मेरी भावनाएं (डे ३)

बच्चे जब जिम्मेदारी समझे तो परवरिश सफल हो जाती है

Originally published in hi
Reactions 1
501
Avanti Srivastav
Avanti Srivastav 09 Feb, 2022 | 1 min read
Story






दोस्तों , 



आज का यह ब्लॉग मेरा समर्पित है मेरे बेटे शुभांश को। हर मां को अपना बच्चा प्यारा होता है और हम निरंतर उनके लिए कुछ न कुछ करते रहते हैं मगर अगर बच्चे यह बात समझते हैं तो आप भावविभोर हो जाती है।

मेरा बेटा शुभांश कभी भी मुझे भारी चीजें उठाने नहीं देता मैं जब कपड़े धो कर सुखाने छत पर ले जाती हूं तो वो झट से बाल्टी मेरे हाथ से लेकर छत पर पहुंचा देता है ।


युं तो मैं अपने आप को उन चंद खुशकिस्मतों में पाती हूं जिसने हर रिश्ते का प्यार पाया ।बचपन में बाबा -दादी, नाना -नानी, बुआ -फूफा ,चाचा- चाची, मामा- मामी सब पारिवारिक रिश्तों का मुझे एक गुलदस्ता मिला।


संयुक्त परिवार जहां लोगों को एक बहुत बड़े झमेले लगते हैं मगर सच कहूं ! तो मुझे ऐसा कभी नहीं लगा ।


उल्टे मुझे तो मिल जुल कर रहना एक सुखद अनुभव लगा ।

मतभेद होते थे मगर मनभेद कभी नहीं हुए।


एक बात जो मैंने अपनी मां से सीखी, की रसोई में कुछ भी बनता तो वह पूरे परिवार के लिए। वह पकौड़ी हो या लड्डू हो या कोई भी सामान कहीं बाहर से आया हो, वह पूरे 11 लोगों के सदस्यों के लिए थोड़ा थोड़ा बचा दिया जाता।


शादी होकर अपनी ससुराल गई तो मैंने भी ऐसा ही नियम बनाया कोई पकवान हो , कहीं से भी आया हो !मैं अपने देवर के लिए, अपने पति के लिए व ससुर जी के लिए थोड़ा थोड़ा हिस्सा बचा देती ,जो उस वक्त घर पर नहीं होते थे।

अभी भी मैं एक संयुक्त परिवार में रहती हूं जहां मेरे देवर देवरानी उनके बच्चे और हम मिलजुल के बहुत प्रेम से रहते हैं।

आपको बताती हूं संयुक्त परिवार में मिलजुल कर रहना सिखाना नहीं पड़ता, बच्चे स्वत: सीख जाते हैं।



एक बार मेरा बेटे के स्कूल में किसी बच्चे का जन्मदिन रहा होगा और उसे एक टॉफी मिली थी ।

उस टॉफी को उसने खाया नहीं ......

क्योंकि आदत में ही नहीं था!

वह घर लाया और मुझ से उसने उसके 8 टुकड़े करवाए और सबके हिस्से लगे मम्मी- पापा, चाचा- चाची, उनके दो बच्चे और मेरी बेटी!

जबकि मैं कह रही थी खा लो ! एक छोटी सी टाॅफी के कितने टुकड़े करोगे?

ऐसे ही एक बार जब वो स्कूल के फेयर में गया तो मैंने उसे ₹500 का नोट दिया।

उसने अपने ऊपर क्या खर्च किया पता नहीं..... ?

लेकिन मेरे लिए, अपनी बहन के लिए, चाची के दोनों बच्चों के लिए छोटे-छोटे उपहार जैसे बिजली वाला लट्टू ,कानों की बालियां , चॉकलेट आदि लेकर आया।


मैं बेहद खुश थी कि चलो! मेरा बेटा, आत्म केंद्रित आत्ममुग्ध नहीं है बल्कि वह अपनी चीजों को सबके साथ मिल बांट कर खुश होता है ।


मेरे प्यारे बेटे बस जैसे हो वैसे ही बने रहना, हमेशा स्त्रियों को आदर व सम्मान देना । तुम मेरे जीवन की अनमोल निधि हो । 




आपकी ब्लॉगर

अवंती श्रीवास्तव



1 likes

Published By

Avanti Srivastav

avantisrivastav

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Kumar Sandeep · 2 years ago last edited 2 years ago

    भावपूर्ण अभिव्यक्ति

Please Login or Create a free account to comment.