आज प्रॉमिस डे पर मुझे मेरे बचपन का एक वाकया याद आ रहा है।
स्कूल के फाइनल एग्जाम के बाद गर्मीयों की वो लम्बी दोपहरी हम बच्चों को मस्ती मज़ा करने का भरपूर मौका देती।
मैं , मेरा बड़ा भाई व मेरी बड़ी बहन हम तीनों ही कभी कैरम ,कभी लुडो तो कभी अपने बरामदे के साथ लगे छोटे से बगीचे में घुस जाते।
वहां कभी अमरूद की डाल पर झुलते, तो कभी जामुन के पेड़ के नीचे बैठकर अक्कड़ बक्कड़ या पकड़म पकड़ाई खेलते।
इस दोपहर मां अपने कमरे में सो जाती ।
दिनभर की थकी मां हमारी गर्मी की छुट्टियों में अपनी नींद पूरी करती ।
ऐसे ही एक दिन लूडो की एक बाजी में हार कर मैं नाराज़ हो बगीचे की तरफ भागी ,पीछे से दीदी भैया भी आ गए। सहसा जामुन के पेड़ पर नजर पड़ी तो देखा व फलों से लदा हुआ था।
" इतने सारे जामुन! चलो ना भैया जामुन तोड़ते हैं मैंने मनुहार किया "
अब हम सब सोचने लगे कि जामुन कैसे तोड़े जाए?
हमारे बरामदे के ठीक ऊपर पहली मंजिल पर कलिमुल्ला आंटी रहती थी और उनके बरामदे से लगी उनकी जाली थी जिससे झांक कर वे हमारे बगीचे में देख लिया करती थी। कई बार तो मेरी मां और उनकी ढेर सारी बातें जाली की कृपा से होती थी।
हम सब जुट गए जामुन तोड़ने के हथियार जुटाने में मगर हमें कोई लंबा डंडा नहीं मिला, तो हमने छोटे छोटे पत्थर इकठ्ठे किए। हम ये पत्थर जामुन के पेड़ पर मारते , कभी एक , कभी दो.... जामुन टूट कर नीचे गिर जाते और हम निराश हो जाते । इसी तरह से हमने काफी समय व्यतीत कर दिया 1 घंटे से ऊपर हो गया मगर हम मुश्किल से 10, 12 जामुन ही तोड़ पाए।
हम अपनी 1 घंटे की मेहनत से निराश, बस जामुन तोड़ने के अभियान को निरस्त ही करने वाले थे कि सहसा जामुन की बारिश होने लगी।
हम लोग खुशी से चिल्ला उठे " अरे वाह! इतनी सारी जामुन नजर उठाई तो देखा ऊपर कलिमुल्ला आंटी एक लोहे की रॉड जिसकी सहायता से मच्छरदानी बांधी जाती थी चारपाइयों में..... उसी से हमारे लिए जामुन तोड़ रही है। हम बेहद खुश हो गए ढेर सारे जामुन हमने इकठ्ठा कर ली यह कैसी सौगात थी हमारे लिए हम बता नहीं सकते .....
अपने पेड़ की जामुन...... वह भी इतनी सारी !
खैर वह जामुन तो हमने खूब छक कर खाई व आस पड़ोस सब जगह बंटवा दी लेकिन उस समय उनके द्वारा की गई यह मदद मेरे दिल में रह गई।
मांगने पर लोग मदद करते हैं मगर उससे कहीं ज्यादा बड़ी मदद वह होती है जब आपको बिना मांगे मदद मिल जाए।
कलिमुल्ला आंटी ने हम बच्चों की ऐसी ही मदद करी थी । मैं उन्हें आज भी बहुत प्यार से याद करती हूं और उन्होंने मुझे सिखाया कि अगर हम किसी की मदद करने के काबिल हैं तो हमें उसके मदद मांगने का इंतजार ना करते हुए खुद आगे बढ़कर मदद कर देनी चाहिए।
प्रॉमिस डे पर यही प्रॉमिस मैं आंटी से करती हूं कि उनका यह सिखाया पाठ हमेशा जीवन में अमल में लाऊंगी।
स्वरचित व मौलिक
अवंति श्रीवास्तव
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