प्रिय पाठको आज मैं आपको सुखी रहने का एक मंत्र दे रही हूं
" इग्नोराए नमः एडजस्टम सर्वत्र:
यह मंत्र आपको छोटी-छोटी परेशानियों से बचाएगा व आपको सामंजस्य स्थापित करने में मदद करेगा।
इस दुनिया में भिन्न-भिन्न प्रकार के लोग हैं वह हर व्यक्ति आपके स्वभाव का हो यह जरूरी नहीं।
यहां तक कि हम जिस परिवार में जन्म लेते है वहां भी सारे सदस्य हमारे मन मुताबिक नहीं होते और हम या तो उनकी बुरी बात को इग्नोर करते हैं या एडजस्ट कर लेते हैं क्योंकि हमें मालूम है मां ,पिता, भाई ,बहन का कोई विकल्प नहीं है।
उसी तरह जब हम स्कूल में जाते हैं वहां भी बहुत सारे लोगों से मिलते हैं और हर कोई आपके हिसाब से नहीं होता...... हम उन लोगों को चुन लेते हैं जो हमारी तरह से होते हैं और बाकियों को इग्नोर कर देते ।
कहने का अर्थ है कि हर कदम पर हमें कहीं ना कहीं कुछ नजरांदाज करना पड़ता है तभी हम एडजस्ट हो पाते हैं वहां ।
ऑफिस, स्कूल हो या घर ,परिवार कुछ भी अपवाद नहीं है सब जगह हम लोगों से ही मिलते जुलते हैं और हर कोई आपकी तरह से सोचे ऐसा जरूरी नहीं है।
अरे छोटी सी बात लीजिए काम वाली बाई ......हम कितनी बार उसके चिकनाई लगे बर्तनों को इग्नोर करके एक फीकी मुस्कान फैलाकर कमलाबाई को कहते हैं क्यों बाई चाय पियोगी?
जिस के उत्तर में वो हमें आंखें मटका कर बताती है " वो फ्लैट नंबर 17 वाली जो मेमसाब है वह चाय नहीं पीती वो क्या पीती है...... ग्रीनटी.... तो वो कह देती है कमला बाई तुम अपनी चाय, खुद बना कर पी लिया करो ....अभी मस्त दूध व शक्कर की चाय पी कर आई उनके फ्लैट से"।
अब आप .........चाय की तरह खौल रही है ।
कमला से डील करने के क्या विकल्प है?
या तो आपके पास विमला, सरला, कांता.... बाईओ की फौज हो रिप्लेसमेंट के लिए .....
क्या कहा नहीं है?
तो फिर इग्नोराए नमः एडजस्टम सर्वत्र: कह गहरी सांस लिजिए।
एक और मजेदार किस्सा सुनाती हूं।
बात तब की है जब मैं कॉलेज जाती थी, लखनऊ में ....और कॉलेज जाने का साधन था टेंपो
यह टेंपो मैं निशातगंज से पकड़ती थी जिसमें दोनों तरफ तीन तीन सवारियां बैठती थी मगर टेंपो वाला जानबूझकर दोनों तरफ चार चार जरूर बैठा था मतलब तीन के बीच में एक को एडजस्ट करता।
अगर आप ना बैठना चाहे तो आपको एक घंटा रुकना पड़ेगा तब जाकर आपको दूसरा टेंपो मिलेगा और अगर आप बैठ जाए तो उन तीन के बीच में आपको बहुत मुश्किल से जगह मिलती मगर टेंपो वाला आपको निश्चित करता " अरे बैठ ..... जाइए अभी थोड़ी देर में एडजस्ट हो जाएगा"।
वह कैसे एडजस्ट करता.?
वह बस टेंपो स्टार्ट करता और पहले स्पीड ब्रेकर पर गाड़ी उछाल देता...... जो सवारी एक इंच खिसकने को तैयार नहीं थी ....अपने आप सब एडजस्ट हो जाती ।
वो कहते हैं ना....... जब जिंदगी झटका देती है अच्छे-अच्छे एडजस्ट हो जाते हैं बस वही हो जाता था।
इसलिए इस मंत्र का जप सदैव करते रहे।
इग्नोराए नमः एडजस्टम सर्वत्र:
हम अगर छोटी-छोटी बातों को नजरअंदाज करना सीख ले और थोड़ी कोशिश एडजस्ट होने की या सामंजस्य बैठाने की करें ..... तो मुझे लगता है कि हम जहां भी रहे ....... सुखी रहेंगे।
वैकल्पिक चेतावनी : यहां अपराध व अत्याचार को नजरअंदाज करने की सलाह नहीं दी जा रही उसका तो आप खुलकर विरोध करें व पुलिस की मदद ले।
स्वरचित व मौलिक
अवंती श्रीवास्तव
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बहुत अच्छी सीख
संदेशप्रद खूबसूरत लेख
खुबसूरत लेख
खूबसूरत मंत्र.....
बहुत खूबसूरत
Bahut bhadhia
Please Login or Create a free account to comment.