प्रेम कहानी में एक राजा होता है एक रानी होती है
कभी दोनों हंसते हैं , कभी दोनों रोते हैं।
जी हां! यह प्रेम कहानी जो मैं अब आपको सुनाने जा रही हूं उस समय की है जब मैं प्रेम की गंभीरता को नहीं समझती थी......
और आज इतने सालों बाद ....जतन कर रही हूं इस प्रेम....नाम की बेचैनी को आप तक पहुंचाने की....
तो यह उन दिनों की बात है जब मैं छठी कक्षा में पढ़ती थी हम बड़ौदा के एयर फोर्स कैंप में रहते थे ।पास ही रहती थी पाठक आंटी...... जिनका न सिर्फ दिल खुला दरबार था अपितु खुला दिमाग व घर के दरवाजे भी सभी के लिए खुले थे।
सीधी साधी महिला बिहार से थी मध्यम वर्गीय परिवार जहां कोई रोक टोक नहीं। हर कोई खुशी खुशी चला आता था और घंटो उनके यहां रहता था ।
जहां चाय किसी भी कप में दे दी जाती थी पर अतिथि बिना खाए पिए घर से जाता नहीं था।
हम सबका प्रिय अड्डा, इतनी छूट जो मिली थी ......हम कुछ भी कर सकते थे वहां। वहीं पर थे हम सबके फेवरेट प्रवीण भैया..... पाठक आंटी के बेटे।
प्रवीण भैया जिनका हंसमुख, मिलनसार स्वभाव हम सब को बहुत लुभाता ।
मोहल्ले में कहीं भी किसी को कोई परेशानी है तो मदद करने के लिए तत्पर ।
वह दौर था जब आपके कितने परसेंटेज आए हैं से किसी को कोई सरोकार नहीं होता था मगर आप कितने विनम्र, आज्ञाकारी, व दूसरों की सहायता करते हैं इस कसौटी पर बच्चों को खूब कसा जाता था।
उनके ठीक सामने रहती थी सहगल आंटी !!!!
यूं तो पाठक अंकल और सहगल अंकल एक ही डिपार्टमेंट
में थे पर इस एक समानता के अलावा उन दोनों परिवारों में कोई समानता नहीं थी ।
जहां पाठक आंटी निम्न मध्यम वर्ग का आभास देती थी वहीं सहगल आंटी उच्च मध्यम वर्ग से उच्च वर्ग की तरफ अग्रसर थी।
पाठक आंटी के यहां भजन कीर्तन , सत्यनारायण की कथा वार्ता होती वही सहगल आंटी के यहां किटी पार्टी और पाॅट लंच होते थे।
ब्यूटी पार्लर का जब यदा-कदा ही नाम सुना जाता था सहगल आंटी नियमित तौर पर अपने हेयर कट व आइब्रो बनवा कर आती थी वहां से। बेहद खूबसूरत थी सहगल आंटी... यूं तो मुझे पाठक आंटी भी बहुत सुंदर लगती थी बड़ी सी पूरे चांद सी सुर्ख लाल बिंदी, मोटी मोटी चोटी और ममतामयी चेहरा....
एक ओर सहगल परिवार , जहां हर चीज नियम कायदे से बंधी थी गेस्ट को बकायदा टी पॉट में टी सर्व की जाती थी।
जहां भविष्य की योजनाएं पहले से बना ली गई थी जैसे उनकी बेटी रिंकू दीदी के पैदा होने के बाद से ही तय था की उन्हें डॉक्टर बनना है।रिंकू दीदी अपनी मम्मी पर ही गई थी खूबसूरत लम्बे भूरे बाल, गोरा रंग, नाज़ुक और बेहद मासूम, उस पर एकदम धीमी आवाज़ में बोलना हमने तो कभी उनकी तेज़ आवाज सुनी ही नहीं ।
अपने जेलखाने से घर से उबढक्षकर रिंकू दीदी भी अक्सर पाठक आंटी के यहां ही रहती दोनों का घर बिल्कुल आमने-सामने जो था। आंटी की बड़ी बेटी बबली दीदी और रिंकू दीदी में काफी पटती ।जहां बबली दीदी कॉलेज में थी वहीं रिकूं दीदी नौवीं कक्षा में और प्रवीण भैया ग्यारवीं में ।
जहां रिंकू दीदी को पहले से ही पता था कि उन्हें डॉक्टर बनना है वहां प्रवीण भैया को बस यह पता था कि उन्हें आर्ट्स इसलिए मिला है क्योंकि कॉमर्स और साइंस में जाने लायक उनके मार्क्स नहीं थे उन्हें परवाह भी नहीं थी।
दिन भर फुटबॉल खेलना , क्रिकेट खेलना और यहां वहां घूमना!
पाठक आंटी को कोई चिंता नहीं रहती और ना अंकल को थोड़ा बहुत बबली दीदी ही उन्हें टोंकती।
आज पाठक आंटी के यहां कीर्तन है और हम सब की ड्यूटी है नींबू की शिकंजी बनाने की।
हम सब में आते हैं मैं , प्रवीण भैया व रिंकू दीदी काम आपस में बटं गया।
मैं छोटी थी तो मेरा काम तो बस आंटियों को गिलास देना भर था। नींबू का रस प्रवीण भैया ने निचोड़ा व एक बाल्टी में शक्कर घोली रिंकू दीदी ने एक गिलास में एक चम्मच शिकंजी देकर दीदी ने प्रवीण भैया से कहा " शक्कर चखना"
" बिल्कुल फिका है "
दीदी ने 2, 4 चम्मच और डाल दी
" अब ?"
" फिका है"
" अब भी?"
.....और क्या?"
"तुम तो रहने दो मैं खुद ही चख लुंगी कह जब गिलास होंठों से लगाया ..... बाप रे बाप कितना मीठा हो गया! "
जब तक वह यह बात पूरा करती उनके जुठे गिलास से प्रवीण भैया ने शिकंजी पी ली
" हां ! अब मीठा हो गया उन्होंने आंखें चमकाते हुए , होठों पर जीभ फेरते हुए कहा ।
शर्म से गाल लाल हो गए थे रिंकू दीदी के।
उस दिन जो शक्कर घोली गई वही मिठास...... प्रेम की, दोनों के जीवन में भी घुल गई ।उस दिन के बाद से मैंने देखा सबके सामने रिंकू दीदी, प्रवीण भैया से कतराने लगी थी।
अब हमारी स्कूल की बस में प्रवीण भैया, रिंकू दीदी के लिए जगह रखते । अक्सर प्रवीण भैया रिंकू दीदी के लिए चिट्ठी देते, जिसे मैं बड़ी सावधानी से रिंकू दीदी को दे देती ।
रिंकू दीदी शाम के समय अक्सर किताब लेकर छत पर चली जाती खुली हवा में पढ़ने। प्रवीण भैया भी वही पहुंच जाते। दोनों का प्रेम धीरे-धीरे परवान चढ़ने लगा था।
सुनहरी शामें वो छत पर साथ बिताने लगे। पता नहीं क्यों ?पर उन्हें साथ देखना बहुत अच्छा लगता था ।
प्यार की खुशबू चारों दिशाओं में फैल रही थी,खुशबू को कौन बांध सकता है?
मगर किसी के लिए यह खुशबू नहीं बदबू थी और वह थे सहगल अंकल...... उन्हें पाठक परिवार से खासी चिढ़ थी । ना तो परिवार अपने स्टैंडर्ड का लगता ना उनका रहन-सहन भाता ।
अपनी ऊंची नाक लेकर वह हमेशा इस परिवार को नीचा दिखाने में लगे रहते । ऐसे में जब वह ऑफिस से लौटे तो उन्होंने छत पर दो आकृतियां देखी और बस विस्फोट हो गया।
मैं दोस्तों के साथ खेल रही थी कि अचानक जोर के थप्पड़ के साथ सहगल अंकल की तेज आवाज आई " लफंगे कहीं के! मेरी लड़की को बरगला रहे हो ? किस लायक हो तुम ..जो मेरी बेटी के ख्वाब देख रहे हो?
ना तुम्हारे परिवार का कोई स्टैंडर्ड, न रहन सहन का तरीका, और ...... और तुम्हारी औकात ही क्या है? अपनी हद में रहो! खबरदार जो तुमने दोबारा मेरी बेटी को बरगलाया...... उससे दूर ही रहना! नहीं तो मेरे से बुरा कोई नहीं होगा...... समझे! "
हे भगवान ! मुझ से तो उस समय प्रवीण भैया का
चेहरा भी नहीं देखा गया । शोर सुन कर पाठक अंकल आंटी भी आ गए वे सहगलअंकल को समझाने लगे " अरे इतना गुस्सा मत कीजिए, बच्चों से गलती हो गई" ।
" गलती हो गई ? आपने खुद बढ़ावा दिया होगा जानते हैं ना कि पैसे वालों की बेटी है ... अच्छा है फंस जाए तो तुम्हारे निकम्मे लड़के की लाइफ़ सेट हो जाएगी"
पहली बार प्रवीण भैया के मुंह से निकला " नहीं अंकल! मम्मी पापा का इसमें कोई दोष नहीं है , उन्हें कुछ मत कहिए"।
बस उसके बाद जैसे खुशियां रूठ गई, मातम सा पसरा रहता बस में और शाम को, युं लग रहा था फूलों ने खिलना बंद कर दिया। हमेशा मुस्कुराती हुई रिंकू दीदी अब डरी सहमी रहती। जिन्हें स्टॉप पर छोड़ने के लिए सहगल आंटी आने लगी थी ।
प्रवीण भैया अपने में ही खोए दिखते थे लगता था कि उनके आत्मसम्मान को किसी ने अपने हाई हील के जूतों से रौंद दिया है। पाठक आंटी के चेहरे की उदासी बताती जैसे वह खुद से रुठ गई हो।
ऐसी बातें कहां छिपती है ... आग की तरह पूरे कैंप में फैल गई थी ।पाठक अंकल आंटी की इतनी बेइज्ज़ती आज तक किसी ने की थी और इसका कारण प्रवीण भैया थे । यही बात प्रवीण भैया को खाए जा रही थी।
पता नहीं क्या सोच कर एक दिन वह सहगल अंकल के घर चले गए। अंकल उन्हें देखते ही चिल्लाए " तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे घर आने की?" निकलो यहां से"
" 1 मिनट अंकल आप बैठे आपने उस दिन जो मेरे मम्मी पापा की बेइज्ज़ती करी वह मुझे बर्दाश्त नहीं , आप मेरी बेइज्जती कर देते तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था आपने कहा कि मैं निकम्मा लड़का आपकी बेटी को फंसाना चाहता हूं तो अब मैं आपको लायक बनकर दिखाऊंगा.... बस आप मुझे कुछ 5 साल की मोहलत दें दे। मैं आपको काबिल बनकर दिखाऊंगा तब तक आप क्या रिंकू को मेरी अमानत मान कर रखेंगे" ।
"ठीक है! पर तब तक तुम रिंकू से दूर रहोगे"!
" जी अंकल" बिना पीछे देखे ही वो बाहर निकल आए।
पांच साल में काबिल बनना था उसको, जिसके दसवीं में बस पास होने भर के नंबर थे ।
उसके बाद पहले सहगल अंकल का तबादला दिल्ली हुआ उसके पीछे-पीछे मेरे पापा का भी हो गया।
दिल्ली एयरफोर्स कैंप से सुबह 6:00 बजे बस निकलती थी स्कूल के लिए , यही बस सबसे आखिर में दिल्ली स्टेशन पहुंचती । जाने वालों को छोड़ती व आने वालों को लेकर कैंप आ जाती।
मैं अब ग्यारहवीं में थी, उस दिन जब लौटते वक्त बस में चढ़ी तो एक नौजवान मेरी सीट पर खिड़की वाली जगह बैठा था। मैं बग़ैर कुछ बोले जाने लगी की वह युवक ने चेहरा मेरी तरफ घुमाया व कहा " यही बैठ जाईए"
यूनिफॉर्म में तो हमें आदत थी लोगों को देखने की मगर इस सजीले युवक की बात ही कुछ और थी, " कैप्टन प्रवीण पाठक" नेमप्लेट पर नज़र गई।
" प्रवीण भैया" मैं खुशी से उछल पड़ी उम्मीद ही नहीं थी फिर कभी उन से मिल पाऊंगी।
आप यहां कैसे ?
बस तुम्हारे साथ तुम्हारे घर जा रहा हूं?
इतने सालों बाद
आंटी कैसी है घर में सब कैसे हैं बबली दीदी कैसी हैं सब पूछते बताते कब हम घर पहुंच गए पता ही नहीं चला
मैं कितनी खुश थी मैं बता ही नहीं सकती
भैया ने अपने ट्रेनिंग के भी अनोखे किस्से सुनाए
हमारे देश की मिलिट्री ट्रेनिंग लगभग लोहे के चने चबाने जैसी होती हैं। इस ट्रेनिंग के बाद तो उनका व्यक्तित्व और निखर कर आया था। सच में प्रवीण भैया खुद को पूरी तरह बदल दिया था वे अब एक जिम्मेदार देश के जिम्मेदार सिपाही थे।
घर पहुंचे तो मेरी मम्मी भी बेहद खुश हुईं रात का खाना खाने के बाद उन्होंने मेरी मम्मी से कहा " सहगल अंकल आंटी से भी मिल आता हूं।"
हम मुस्कुरा उठे जैसे कह रहे थे हम तो जानते ही हैं तुम उन्हीं से मिलने आए हो मगर बोला कुछ नहीं।
फिर प्रवीण भैया बोले " आंटी आप मेरा इंतजार नहीं करना देर रात हुई तो मैं वहीं रुक जाऊंगा , मेरी तरफ देख कर बोले सोनी , सुबह तुम्हारी बस से ही वापस जाना है ठीक है"
" जी भैया"
रात में भैया नहीं आए हम समझ रहे थे व खुश हो रहे थे। सुबह जब बस में बैठी तू मेरी नजर फिर प्रवीण भैया को ढूंढने लगी उन्हें भी स्टेशन इसी बस से जाना था ,मैं उनका बेसब्री से इंतजार कर रही थी ।
उफ्फ! क्या पल रहा होगा.... जब रिंकू दीदी ने अपने प्यार का दीदार किया होगा , एक ऐसा चाहने वाला जो उन्हें पाने के लिए काबिल बनने निकल पड़ा और 5 साल की कड़ी मेहनत के बाद आज कैप्टन बना हमारे सामने खड़ा है ।
" प्रवीण भैया....! मैंने बस रुकवा दी वे गार्ड रूम के पास खड़े थे । मेरी नजरें उनके चेहरे पर खुशी तलाश करने लगी पर वहां तो दुनिया भर का दर्द पसरा था .....
" क्या हुआ भैया? बताइए ना! "
यूं लगा जैसे बैकग्राउंड में यह गीत बजे उठा
कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
कभी जमीं तो कभी आसमां नहीं मिलता
" सोनी ! गम इस बात का नहीं की इंकार मिला, गम इस बात का है कि इंकार खुद तेरी रिंकू दीदी ने किया। इन 5 सालों में उसे पूरी तरह प्रैक्टिकल और प्रोफेशनल बना दिया अंकल और आंटी ने। उसने एक एन .आर .आई से सगाई कर ली है, फिर खुद को तसल्ली देते हुए बोले
" वह मुझे प्यार करे ना करे पर मेरे दिल में यह पहला प्यार हमेशा हमेशा के लिए जवां रहेगा , जिसने एक लापरवाह लड़के को एक जिम्मेदार सिपाही बना दिया। "
फिर वो मुझसे नजरें चुराने लगे..... लगा जैसे बेमौसम बारिश की तैयारी कर ली थी आंखों ने।
स्वरचित व मौलिक
अवंति श्रीवास्तव
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बेहद खूबसूरत प्रेम कहानी
धन्यवाद प्रिय
wah bahut badiya
बहुत बहुत सुन्दर
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