हग डे पर एक प्यारी सी झप्पी मेरी प्यारी सी दादी को
अब जब की वो मेरे साथ नहीं है तो उनका ना होना बड़ा अखरता है।
बाबा दादी अपने पोते व पोतियों को अनकंडीशनल लव देते है यही प्यार हमने भी पाया।
मेरी दादी अन्नपूर्णा की छवि को चरितार्थ करती थी जब भी वो भोजन करती सबसे पहले हमें अपने हाथों से खिलाती।
हम बच्चों के साथ बच्चा बन लुडो,कैरम और ताश खेलती।
ईश्वर ने उन्हें कई हुनरों से नवाजा था आज के ड्रेस डिजाइनर तो उनके आगे पानी भरते ! वो इतना खूबसूरत काम करती थी।
हमारे घर की शादी में दुल्हन का लहंगा वो ही बनाती थी जिस पर महीन गोटा पट्टी का काम व कढ़ाई करती।
मुझे भी सौभाग्य मिला उनके हाथों से सिली पोशाक पहनने का।
एक बात जो मुझे बहुत प्रभावित करती थी उनकी, वो थी आडंबर रहित पूजा पाठ। वो आर्यसमाजी थी तो उनकी पूजा बस कुछ मिनटों की होती । वो अच्छे कर्म करने में विश्वास रखती ना की घंटों पूजा पाठ में बिताने में।
अस्सी की उम्र में भी उनमें सीखने की लगन थी उन्होंने सिर्फ दसवीं तक अंग्रेजी पढ़ी थी तो अंग्रेजी में नाम पढ़ लेती थीं।
उस समय मैं कालेज में थी सुबह टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार पढ़ रही थी की उन्होंने पूछा " बिटिया अटल बिहारी जी के बारे में क्या लिखा है अखबार में?
मैं हैरान थी उन्हें कैसे पता? तब उन्होंने कहा की नाम तो पढ़ लेते हैं पर पूरी खबर नहीं समझ आती ।
मुझे फिर एक आइडिया सूझा मैं अखबार की सब हेडलाइन हिन्दी में उसी के नीचे लिख देती ।
उनका मुस्कुराता चेहरा और खनकती आवाज आज भी ज़हन में ताज़गी भर देती है । मेरी जब शादी हुई तो वे बहुत उत्साहित थी , जब मेरा बेटा हुआ तो उसे गोद में लेकर वो घंटों निहारती रही व नई मां को क्या करना चाहिए व क्या नहीं मुझे उन से खूब समझाइश मिली।
संतोष इस बात का है कि उन्होंने भरपूर जीवन जिया।
स्वरचित व मौलिक
अवंति श्रीवास्तव
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