जब कमांडिंग ऑफिसर ने उसके सीने में पदक लगाया तो रोहन ने एक कड़क सेल्यूट मारा और लेफ्ट राइट, लेफ्ट राइट....
उसे बेस्ट कैडेट का पदक मिला था,सूरज की रोशनी में उसका रोशन चेहरा और एक प्रतिबिंब परिलक्षित हुआ.....
सरला जी का चेहरा कई सारे भाव एक साथ दिखा रहा था जहां एक तरफ पोते की सफलता पर गर्व था वही एक अदृश्य भय ने उन्हें घेर लिया था।
उन्होंने कितनी कोशिश की थी पोते रोहन को सेना से दूर रखने की.....
पति को 1975 की लड़ाई में ......फिर बेटे को कारगिल युद्ध में .........खोने के बाद उनके झुके कंधों ने जैसे हार मान ली थी।
पर यह भी सच था देश की सेवा करना उनके परिवार के खून में था।
तो रोहन ने बिना बताए एन.डी.ए का फॉर्म भर दिया।
" क्या दादी ! सब यूं ही डरने लगे तो भारत मां की रक्षा कौन करेगा ?"
और आज वह लेफ्टिनेंट बन गया था।
जोर से तालियों की गड़गड़ाहट ने विचारों की श्रंखला तोड़ी, तो महसूस हुआ जैसे बेटे की परछाई के पीछे पीछे , पोता उस डर की खाई को भी पाट रहा था जो उनके दिल में घर कर गई थी।
स्वरचित व मौलिक
अवंती श्रीवास्तव
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