कविता: ध्वनियां

My poem on sound and words

Originally published in hi
Reactions 2
852
Avanti Srivastav
Avanti Srivastav 08 Sep, 2020 | 1 min read

कविता: ध्वनियां


शब्दों का कोलाहल

 पसरा चहुं ओर 

  क्या उन अल्फाजों का

  है कोई मोल 

  बिना अर्थ के बिखरे पड़े हैं

  युं मनकों की टूटी माला

  जिसने चाहा लुढ़का दिया 

  जैसे कोई बेबस प्याला

   

  कभी सुना था ध्वनियों की भी

  अपनी तासीर होती है 

  मधुर ,कर्कश ,राग द्वेष सब 

  भावनाएं व्यक्त होती हैं

  शब्दों के ध्वनित होने से

   मर्म समझ आते हैं 

  ध्वनियों के मध्यम पंचम से 

  अर्थ बदल जाते हैं

  विज्ञान कहे ध्वनियां 

  अजर अमर होती हैं 

  एक बार जो निकल पड़े 

  तो ब्रह्मांड में विचरण करती हैं

   

  मूक बधिरों में भी तो 

  शब्दों का भंडार होता है

  उनकी आंखों में 

  भावनाओं का दर्पण होता है 

  उनका अटल मौन मगर

   अविरल कहता सुनता है 

   फिर सारी ध्वनियां, सारे शब्द 

   बेहद बौने हो जाते हैं।


  मौलिक व स्वरचित

  अवंती श्रीवास्तव



2 likes

Published By

Avanti Srivastav

avantisrivastav

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Kumar Sandeep · 4 years ago last edited 4 years ago

    उत्कृष्ट रचना

  • Avanti Srivastav · 4 years ago last edited 4 years ago

    Thanks kumar Sandeep

  • Sonnu Lamba · 4 years ago last edited 4 years ago

    बहुत बढिया..! ध्वनियां लौट लौट कर कानो से टकराती हैं..! इको मन को बार बार तडपाती हैं..!!

  • Avanti Srivastav · 4 years ago last edited 4 years ago

    Wah aap ne bhi bahut accha likha

Please Login or Create a free account to comment.