बुधिया थके कदमों से धीरे धीरे चल रही थी तभी सर्द हवा के थपेड़ों ने उसकी हड्डियां कंपकंपा दी।सर्दियों के मौसम की आहट से ही उसका मन बेचैन हो गया ।अब तो अंधेरा भी जल्दी हो जाएगा और दिन कब उड़ जाएगा पता ही नहीं चलेगा......
उसने अपने कदमों की रफ्तार बढ़ा दी अच्छा है ! आज बड़ी मालकिन ने मेथी के परांठे बांध दिए।
उसके पास समय कहां कि वह मेथी, पालक तोड़े और उनके पराठे बनाए। सुबह जल्दी जल्दी किसी तरह फुलके उतार देती है और रात में दाल चावल बस !
घर पहुंचकर भी वो कांप रही थी ।
अम्मा! आज मालकिन ने क्या दिया? 6 वर्षीय सोनू ने हाथ में पकड़ा थैला उससे ले लिया 11 वर्षीय सुगनी ने चाय चढ़ा दी।
उसकी तरफ देख कर बोली " अम्मा ! आज जनों सर्दी कुछ ज्यादा ही लग रही है"।
" मैं रजाई निकाल देती हूं " पुरानी गुदड़ी हो रही रजाई निकाल उसे देर तक देखती रही, हर साल नई रूई डाल कर धुनवाने की सोचती हूं और हर साल........ ऐसे ही चला जाता है , खोली का किराया , खाना-पीना और गांव में रह रहे मां -बाबूजी की दवाइयां, सुबह 7:00 बजे से शाम के छः बजे तक खटकने के बाद भी महीने के आखिर तक सब फिसल जाता है।
सुबह जब बड़ी मालकिन, साहब व मेमसाब ने उसे बुलाया तो उसकी घिग्गी बंध गई , क्या पता क्या गलती हो गई ........ उससे?
" मालकिन... मालकिन कल थोड़ा सा आटा बाहर छुट गया शायद माफ कर दीजिएगा...."
" नहीं .....नहीं... कोई बात नहीं! कल तुम हमारे साथ अस्पताल चलोगी क्या ?"
" साहब हमने तो वैक्सीन बहुत पहले ही लगा ली थी हमको तो दोनों डोज़ लग चुके हैं! "
अबकी बार मालकिन ने कहा "ध्यान से सुनो बुधिया हम यह नहीं कह रहे हैं , असल में तेरी छोटी मेमसाब मां नहीं बन पा रही इसलिए हम सरोगेसी से ...... तेरी मदद से उसको मां बनाएंगे।
" तुझे कुछ नहीं करना तुझे तो बस डॉक्टर के पास चलना है और 9 महीने कोई काम नहीं करना है तेरी हम पूरी देखभाल करेंगे "
" पर मालकिन मेरे बच्चे......
" उन्हें भी तुम अपने साथ रखना हम सब 9 महीने के लिए यहां से कहीं दूर चले जाएंगे और जब बच्चा हो जाएगा वापस आ जाएंगे।
तुम बच्चा इनको दे देना और तू अपने बच्चों के साथ हंसी-खुशी अपना जीवन जीना ।
इसके लिए तू जो मांगे वह मैं तुझे देने को तैयार हूं छह लाख
" पर मालकिन....
" अच्छा दस लाख ठीक रहेगा..... तू करेगी यह सब हमारे लिए?"
बुधिया को तो लगा जैसे उसका भाग्य ही खुल गया " हां क्यों नहीं? "
तो इस बार का सर्दियों का मौसम उसकी जिंदगी का सबसे बेहतरीन रहा ।
खूबसूरत से कॉटेज में अपने दोनों बच्चों के साथ रूम हीटर की गर्मी में उसने इस बार कि सर्दियां बिताई। दूध फल से लेकर आटे के लड्डू, मेवा मिष्ठान, साग, भाजी तरकारी दोनों समय छक कर खाया ।
मगर नौं महीने बाद जब उसने बच्चे को उनके हाथों में सौंपा तो लगा दिल पर एक बहुत भारी बर्फ की सिल्ली किसी ने रख दी है और इसकी ठंड ताउम्र हड्डियां गलाएगी।
स्वरचित व मौलिक
अवंती श्रीवास्तव
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
bahut badiya
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