एक मग कॉफी बना कर , वह कौन सी कॉफी आजकल ट्रेंडिंग है? डालगोना कॉफी वही, उसने भी बनाई, पीने से पहले फोटो खींचना जरूरी समझा , पता नहीं! कौन से चैलेंज में टैग कर दी जाए ? , तो कम से कम फिर से बनाने की जहमत से तो बचेगी , सोच एक मुस्कुराहट तैर गई चेहरे पर ।
रुचि, वैसे तो अब 32 वर्ष की होने आई पर आज भी कोई उसे 27- 28 साल से ज्यादा की नहीं कह सकता। इसका कारण शायद उसका वह साफ दिल है ,जो चेहरे पर मासूमियत की तरह झलकता है।
इतनी सी उम्र में उसने काफी कड़वाहट झेल ली थी पर उसकी परछाई ना दिल पर पड़ने दी, ना चेहरे पर।
2 साल पहले ही एक्सीडेंट में मां- पिता दोनों चल बसे ।भैया जॉब के सिलसिले में जो अमेरिका गए तो वही के हो गए ।पराए देश ने उन्हें भी पराया कर दिया।
कितनी उम्मीदों से शादी की गई थी भैया की पर 15 दिन ही नसीब हुआ भाभी का साथ ।
अब तो दोनों ग्रीन कार्ड होल्डर है अमेरिका में, सब है भैया के पास, अच्छी जॉब, अपना मकान और अपना छोटा सा परिवार जिसमें रुचि की गिनती नहीं होती।
राखी का आदान-प्रदान और 6 महीने में एक बार बातचीत होती है जिसमें सबसे ज्यादा दोहराए जाने वाला वाक्य है " क्या करें ? टाइम ही नहीं मिलता " ।
अब रुचि ने भी बुलाना मनुहार करना छोड़ दिया है मगर उसका मन रोहन और पिंकी के लिए मचल उठता है जो वह तोतली जुबान में बुआ बुआ बुलाते हैं।
लॉक डाउन की वजह से उसका वर्क फ्रॉम होम चल रहा है
फोटो खींच उसने लैपटॉप अपने पैरों पर रख बिस्तर पर आसन जमाया ही था कि फोन बज उठा ।
वह अब काम के मूड में आ चुकी थी तो फोन उठाना अखर रहा था, यह सोचकर की बॉस का तो नहीं, उठा लिया पर बिना नाम के सिर्फ नंबर था ऐसे अपरिचित फोन वह नहीं उठाती , तो काट दिया मगर फिर थोड़ी देर में फोन बज उठा आखिर हार कर ,फोन उठाना पड़ा।
दूसरी तरफ से आवाज आई " बेटा पहचाना ? मैं मिसेज अग्रवाल, ब्लॉक सी में फ्लैट नंबर 202 में रहती हूं"।
ध्यान आया एक -आध बार बात हुई है पार्क में ,शाम को, 'स्नेहा आंटी' सौम्य व काफी मिलनसार महिला है। वह पहले बैंक में ही काम करती थी इसलिए उससे ज्यादा हिल मिलकर बात करती थी। अंकल थे नहीं, एक बेटा .....शायद बाहर रहता था।
यह फ्लैट उसके फ्लैट से 2 फ्लोर ऊपर था।
"जी आंटी पहचाना, कैसी है आप"?
" बेटा तुम्हारे अलावा मेरे पास किसी का नंबर नहीं था लोकल में , अभिनव सिंगापुर में है और मेरे भाई दिल्ली में इस लॉक डाउन की वजह से कोई आ नहीं पा रहा, ना कामवाली बाई ,ना कोई मदद" उन्होंने हिचकीचाहते हुए कहा।
" क्या हुआ है आंटी ? आप मुझे बताइए"।
" किचन से आ रही थी, तो पता नहीं कैसे पैर मुड़ गया। पैर में मोच आ गई लगता है पर इस वजह से पैर नीचे रखने में बड़ी परेशानी हो रही है ।कल तो किसी तरह काम चल गया पर आज सूजन बहुत बढ़ गई है"।
" अच्छा मैं आती हूं आंटी" कह फोन हाथ में लिए दरवाजा लॉक कर दौड़ पड़ी आंटी के घर।
यही चीज़ उसे दूसरों से अलग करती है जहां लोग पहले दिमाग लगाते ,रुचि दिल की सुनती है।
दरवाजा खटखटाने की जरूरत नहीं पड़ी अंदर घुसी तो देखा बैठक के दिवान पर आंटी लेटी थी।
मैक्सी में पैर पसारे पूरा कमरा किसी मरहम की गंध से भरा था आंटी ने खुद का इलाज करने की कोशिश की थी मगर दर्द..... कम नहीं हुआ था।
रुचि ने पैर हिला डुला कर देखा तो ज्यादा दर्द नहीं हुआ इसका मतलब मोच ही है। उसे अपनी दादी के घरेलू नुस्खे जानने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था ,तो पता था अगर हल्दी चूना घोल, गर्म कर सूजन पर लगाया जाए तो सूजन जल्दी हट जाती है व दर्द में आराम मिलता है।
रुचि की दादी पान खाती थी और उनका पान दान उसने सहेज कर रखा था तो चूना तो अवश्य उसमें होगा ।सोच " अभी आई , आंटी " कह वह फुर्ती से गई कुछ ही देर में हल्दी चुने का घोल लेकर वापस आ गई।
घोल लगाकर कसकर पट्टी बांध दी।
अब चिंता हुई आंटी के खाने की " आपने कुछ खाया आंटी"।
उन्होंने संकोचवश पहले तो कुछ नहीं कहा फिर ना में सिर हिला दिया।
आंटी फिर धीरे से बोली " ऐसा करो बेटा कुछ यहीं बना लो मिलकर खाते हैं " सामान बताने के लिए उठने की कोशिश करी कि " आ sssssssउच.....
" रहने दीजिए आंटी मैं देख लेती हूं" ।
2 साल से अकेले ही सब संभाल रही है रुचि, इसलिए कोई परेशानी नहीं हुई झट से दाल चावल बना दिया।
बैठ कर खा ही रहे थे कि इस बार आंटी का फोन बजा उनके बेटे का था।
" कैसी हो मां ?" एक रुआसां सा स्वर गूंजा।
" ठीक हूं बेटा , वह नीचे के फ्लोर वाली रुचि को बुला लिया है ।उसने हल्दी चूना लगा दिया है। थोड़ा आराम मिला है हम बस खाना खा रहे थे" ।
" मुझे कितना बुरा लग रहा है मां, मैं बता नहीं सकता आप भी सावधानी से नहीं चलती " वह गुस्सा होने लगा।
यह गुस्सा शायद खुद कुछ ना कर पाने का था जो मां पर निकल रहा था।
" कुछ हो जाता तो? मैं अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाता" एक अनजान भय ने उसे घेर लिया था।
" कुछ नहीं होगा मुझे , तेरी शादी किए बगैर मैं मरने वाली नहीं"!
आंटी ने चिढ़ाते हुए कहा।
" अच्छा मां, ध्यान रखना और खाना खा लीजिए मैं थोड़ी देर बाद फोन लगाता हूं" ।
" यह अभि भी ना....... एक ममतामयी मुस्कान उनके चेहरे पर थी।
बिल्कुल उसकी मां की तरह रुचि ने सोचा।
मां भी ना ......सारी एक सी होती हैं ऐसे ही उसकी मां भी कहती थी अक्सर जब वह उन्हें अपना ख्याल रखने को कहती
" तेरी शादी किए बगैर मैं मरने वाली नहीं...... मगर ऐसा गई कि .......एक लंबी सांस ले रुचि ने कहा " लाइए ना आंटी, मैं प्लेट रख दूं धोकर" ।
" तुझे बहुत परेशान कर रही हूं बेटा" ।
" कैसी बातें कर रही है आंटी, इसमें परेशानी कैसी?
" ना बेटा ! अपना सब काम छोड़ कर तुम मेरी देखभाल कर रही हो। यह बहुत बड़ी बात है।
वैसे मैं बुढ़िया, किसी को परेशान नहीं करती। यूं ही बैठी बैठी जान दे देती। अभिनव के खातिर जीना पड़ रहा है जब तक उसकी शादी ना कर दूं मैं अपने प्राण भी नहीं दे सकती। नहीं तो , तेरे अंकल के जाने के बाद कोई मोह-माया नहीं बची इस जीवन से"।
"आंटी क्या कह रही हैं आप? मुझे आप अपने पैरों पर खड़ी आत्मनिर्भर नारी लगती थी ऐसी निराशा की बातें आपको शोभा नहीं देती, अच्छा अब मैं चलती हूं आप भी आराम कीजिए मैं शाम को फिर आऊंगी"।
शाम को रूचि पहुंची तो शायद अभिनव से बात चल रही थी , दरवाजा खुला ही था उसने घुसते हुए सुना " बहुत अच्छी बच्ची है, इस वक्त, ऐसे कौन सेवा करता है?" उसे देख आंटी फोन देते हुए बोली " तुम ही थैंक्स बोल दो" ।
स्क्रीन पर एक चेहरा जो स्नेहा जी से काफी मिलता-जुलता था, बस नौजवान युवक के चिह्न लिए यानी मूछें " थैंक्स जो इस मुश्किल घड़ी में आपने हमारा साथ दिया"।
" थैंक्स की कोई बात नहीं अभि" ।
नहीं ...नहीं... आप नहीं जानती मैं यहां खुद को कितना मजबूर महसूस कर रहा हूं"।
" कोई बात नहीं , तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं, मैं हूं"।
" अच्छा आपको ज्यादा परेशान तो नहीं कर रही आपकी आंटी"।
"नहीं! नहीं अभी तो वह गुड गर्ल है" कह रुचि खिलखिला उठी।
फिर स्नेहा जी ने फोन ले लिया " अच्छा मां, अपना ध्यान रखना , लव यू " कह अभि ने फोन काट दिया।
इस बीच रुचि दिन में दो बार आंटी के घर का चक्कर लगा लेती।
शाम की चाय साथ में ही लेते और उसी वक्त अभि का वीडियो कॉल करना जैसे तय था।
रुचि व अभि काफी हिल मिलकर आपस में बात करते । यह वीडियो कॉल बहुत लंबा चलता ...एक दूसरे के प्रोफेशनल से लेकर पर्सनल जिंदगी के पहलू वे अब एक दूसरे को बताने लगे थे।
अब आंटी भी स्वस्थ हो चली थी फिर भी रुचि शाम की चाय उनके साथ ही पीती और आंटी को भी पता था वह जरूर आएगी तो दरवाजा खुला ही रहता।
" क्या बात है! वाह! क्या खुशबू आ रही है! आंटी क्या बात है? आज तो पार्टी का माहौल लग रहा है। किस बात की है पार्टी?"
आंटी चाय लेकर आ गई बैठते हुए बोली " इस तूफान के आने की खुशी में पार्टी है"
स्क्रीन पर अभि था ।
थोड़ा सकुचाते हुए रुचि ने फोन हाथ में ले लिया " हैप्पी बर्थडे अभि" ।
" थैंक्यू "
" गिफ्ट के लिए तुम्हें यहां आना होगा" रुचि ने चिढ़ाते हुए कहा।
" तुम मुझे गिफ्ट दे चुकी हो रुचि"
"क्या" ?
" हां मेरी मां की देखभाल करके तुमने मुझे अनमोल तोहफा दे दिया है अब तो मैं तुम्हें रिटर्न गिफ्ट दूंगा" ।
" मुझे दूसरा काॅल आ रहा है मैं बाद में बात करता हूं " ।
और फोन कट गया रुचि को अच्छा नहीं लगा।
तभी आंटी पुराना एल्बम लेकर आ गई और उसे अभि की बचपन की फोटो दिखाने लगी।
" पता है रुचि, मैं तो बेहोश थी जब अभि हुआ। जब आंख खुली तो तेरे अंकल मुस्कुराते हुए बोले " तूफान आया है, तूफान" ।
" सच बड़ा शरारती था बचपन में , अभि इतना दौड़ता भागता बस, उसके पीछे पीछे मैं भागती रहती" ।
एक लंबी सांस लेकर आंटी .... बोली।
अभि आज ना होकर भी हर जगह था ,खाना उसकी पसंद का बना था।
आंटी और रुचि दोनों जैसे अभि में ही खोए थे। आंटी बता रही थी " पहले तो बहुत जद्दी व चंचल था बहुत परेशान कर लेता था, पर तेरे अंकल के जाने के बाद...... आंखें छलक आई थी आंटी की इतना जिम्मेदार हो गया।
" तब दसवीं में था अभि ....1996 की बात है अचानक हार्ट अटैक आया और बस......
आज रोने का दिन नहीं है आंटी , क्या कह रही थी आप अभि 1996 में दसवीं में था?
" हां"
" उसके बाद से इतना समझदार हो गया हर वक्त मेरी चिंता करता रहता है" ।
फिर थोड़ा हिचकीचाते हुए आंटी बोली " बेटा आज मैं चाहती हूं पर ........शायद उन्हें शब्द नहीं मिल रहे थे वो
मैं महसूस कर रही हूं........"
"कैसे कहूं.... "
क्या.... कहुं ?
" क्या आंटी?"
" यही कि बड़ी मुश्किल से हीरा मिलता है और मैं तेरे जैसे हीरे को खोना नहीं चाहती ,इसे तो मैं अपने बेटे की उंगली में सजाऊंगी"।
" क्या?"
हां! अगर तुम्हें एतराज ना हो तो मैं तुम्हें अपनी बहू बनाना चाहती हूं" ।
कितने ही रंग रुचि के चेहरे पर आए और गए ।
फिर वह एक झटके से उठी ' मैं जा रही हूं " ।कह तीर सी चली गई ।
यह सब इतना जल्दी हुआ कि आंटी हतप्रभ देखती रह गई।
धम्म! से बिस्तर पर जो रुचि गिरी तो सिसकियों का बांध टूट गया। वो बदकिस्मत है ये तो उसे हमेशा महसूस होता था पर इतनी की हर खुशी उसे छु कर दम तोड़ देगी यह ना सोचा था।
वो कब तक रोती रही उसे भी नहीं पता चला ,रोते-रोते आंख लग गई, जो बेल की आवाज से खुली।
मुंह धोया ,बाल बांधे व दरवाज़ा खोला एक बड़ी सी थाली में खाना सजाकर स्नेह आंटी खड़ी थी।
उसे देखते ही बोली " ठीक है भाई ! क्यों तुम इस बुढ़िया की जिंदगी भर सेवा का ठेका लोगी "।
" तुमने मेरी मदद की और मैं....... मैं तुम्हारे गले ही पड़ गई, पर इस बात पर कोई खाना थोड़ी ना छोड़ देता है? बहुत मन से बनाया है । मत करना अभि से शादी....... पर खाना तो खा लो...." ।
फिर एक बार इतनी ममता व प्यार ने उसके नैन छलका दिए।
" मां ....."बोल वह आंटी के गले लग गई ।
" क्या बात है मेरी बच्ची? मुझे बताओ तो सही!"
" नहीं .......मैं यह शादी नहीं कर सकती , आप भी नहीं करेंगी अगर आप जानेंगी कि.........
मैं अभि से ३ साल बड़ी हूं"।
"कैसे?"
" ऐसे कि अभि ने 1996 में दसवीं पास की और मैंने 93 में " ।
" ओह ! तो यह बात है! "
"चल तो आज मैं तुझे एक और कहानी सुनाती हूं वह जमाना था जब शादी के लिए कुंडली से जरूरी कुछ नहीं होता था।
मेरे पिता बीमार रहने लगे थे उन्हें मेरी शादी की चिंता खाए जा रही थी। इसी बीच तेरे अंकल का रिश्ता मेरे लिए आया। तो मेरे भैया ने झुठी कुंडली बनाकर दे दी।
कुंडली मिल गई और शादी तय हो गई । मुझे असलियत पता थी कि मैं तेरे अंकल से 2 साल बड़ी हूं बड़ी ग्लानि हो रही थी। उन दिनों ना इतनी कोई फोन की सुविधा थी ना जाने आने की ।
समझ में ही नहीं आ रहा था क्या करूं?
शादी तो हो गई पर सुहागरात वाले दिन जब मैं तेरे अंकल से मिली तो सबसे पहले अपना जन्म प्रमाण पत्र दिखाया। सही उम्र बता दी । पहले तो वो मेरे भैया व पिता पर बहुत गुस्सा हुए।
पूरी रात आंखों में कट गई सेज पर सजे फूल मेरे चेहरे की तरह मुरझा गए।
3 दिन उन्होंने किसी से कुछ नहीं कहा। मुझे लगा की मुझसे नाराज हैं तो मैं यहां कैसे रहूंगी?तो अपना सामान लगाने लगी।
जब अटैची लगा रही थी तो वह पास आए और बोले " इस सब में तुम्हारी क्या गलती? तुम्हें क्यों सजा दूं? तुमने तो बल्कि सच बोलने की हिम्मत की, हां! तुम्हारे भाई को कभी माफ नहीं करूंगा" ।
" तो बेटा हमारा जोड़ा भी ऐसा ही था, कौन बड़ा , कौन छोटा, इससे शादी के बंधन पर कोई फर्क नहीं पड़ता ।फर्क पड़ता है अगर दिल से दिल का लगाव न हो, जुड़ाव ना हो, परवाह ना हो, इज्जत ना हो , तो दो पर्फेक्ट लोग भी फेल हो जाते हैं रिश्ता संभालने में।
" मेरी शादीशुदा जिंदगी बहुत खूबसूरत रही और मुझे पूरा यकीन है अभि और रुचि भी एक दूसरे के लिए बने हैं इसलिए दकियानूसी बातें अपने दिमाग से निकालो ! इससे कोई फर्क नहीं पड़ता" ।
रुचि और आंटी दोनों एक दूसरे के गले लग गए नया दिन कल नई शुरुआत लेकर आ रहा था।
मौलिक व स्वरचित
अवंती श्रीवास्तव
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Pls everyone do read this story
वाह कितनी खूबसूरती से पूरा चित्रण किया है आपने 💝
धन्यवाद शुषमा , 😘😘
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