प्रेम जैसे निश्छल मुस्कान
प्रेम पर होती है बहुत बात
कोई आलिंगन व चुंबन को
ही प्रेम मान लेता है
प्रबुद्ध लोग प्रेम की
व्याख्या करने के लिए
खंगाल लेते हैं सारे
ज्ञान भंडार मगर
अज्ञानी बस प्रेम में
उलझे रहते है।
प्रेम तो उगता है
कोमल डालियों में
प्रेम की उष्मा ही से
नन्हे चूज़े उभरते हैं
अचंभित तो स्त्रियां
करती है , वो डुब जाती है
आकंठ प्रेम में,
एक अनदेखे अजन्मे के लिए
तब प्रेम उनकी देह में
पल पल पलता है
मौलिक व स्वरचित
अवंती श्रीवास्तव
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