एक गेंद सरसराती हुई टप से बालकनी में जा गिरी
नन्हा रोहित भागकर बालकनी में गया और बड़ी हसरत से गेंद को देखा , सड़क के उस पार गंदी बस्ती के बाहर गली क्रिकेट खेलते हुए बस्ती के बच्चों को....
जो बेपरवाह सिर्फ और सिर्फ खेल का आनंद ले रहे थे।
उसने एक ठंडी आह भरी! पूरे जोश से बाॅल उठाई और सड़क के उस पार पूरी ताकत से उछाल दी । फिर खुद ही सोचने लगा क्या ऐसी उड़ान वह भर सकता है! नहीं.....
उसके पंखों को तो जकड़ दिया गया है वह उतनी ही उड़ान भर सकता है जितनी उसके माता-पिता चाहे.....
उसका मासूम बचपन तो घड़ी की सुइयों पर नाचता है...
सुबह स्कूल, फिर हॉबी क्लासेस , शाम को कराटे और रात को फिर पढ़ाई । इसी में उसे ओलंपियाड और दूसरी प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए भी तैयारी कराई जाती हैं।
24 घंटों में से 1 घंटा भी खुद के लिए नसीब नहीं..... जहां वह बेपरवाह हो अपने सपने बुन सके ,चुन सके.....
उसका बचपन तो खर्च हो रहा है मां-बाप के सपनों को पूरा करने में , उनकी अपने बच्चे को टॉपर बनाने की जद्दोजहद में ...
उन्होंने अपने बच्चे पर नकेल डाल अपने सपनों की सवारी उसी के नाज़ुक कंधों पर डाल दी है।
स्वरचित व मौलिक
अवंती श्रीवास्तव
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