सिविल हॉस्पिटल ले चलिए ना!(थ्रिलर)

क्या अतृप्त आत्मा अभी भी भटकती है पैसा कमाना ही सब कुछ है या इंसानियत? ऐसे ही सवालों का जवाब ढूंढती है यह कहानी

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Avanti Srivastav
Avanti Srivastav 17 Oct, 2020 | 1 min read

सिविल हॉस्पिटल ले चलिए ना!


राकेश के पैर तेजी से ब्रेक पर जाते हैं और एक झटके में कार रुक जाती हैं......

पसीने की चंद बूंदे उसके माथे पर चमक उठती हैं मगर वह तुरंत गाड़ी से उतरने से घबराता है.... उसे अनगिनत लोगों ने समझाया है ....आजकल के नए तरीके जिससे लोगों को लूटा जाता है।


तभी वह बदहवास युवती जो उसके बोनट से टकराई थी

उसकी खिड़की की तरफ आ कर कुछ बोलती है राकेश ने केवल होंठ हिलते देखे आवाज उसके कानों तक नहीं पहुंची फिर ध्यान आया खिड़की का कांच चढ़ा है।




उसने बड़ी सावधानी से थोड़ा सा कांच सरकाया ...

 झल्लाकर बोला " क्या मरना है! जो सड़क के बीचों बीच खड़ी हो! 

.अब आवाज़ उसके कानों तक पहुंची " कोई गाड़ी नहीं रोक रहा था इसलिए…........ सिविल हॉस्पिटल ले चलिए ना ! प्लीज......... मेरा 4 साल का बेटा बहुत बीमार है"!


रात के 10:30 बजे हैं हर तरफ सन्नाटा पसरा है ऐसे में एक अनजान औरत का यू मिलना उसे अंदर तक डरा रहा था उसने देखा तो बेतरतीब से बंधी साड़ी, खुले बाल ,एक छोटा पर्स था उसके पास।

 वो ना में सिर हिलाता है तो ...

 वह दोबारा आती है " प्लीज मेरी गाड़ी खराब हो गई है"। इशारे से दिखाती है सड़क के उस पार एक स्विफ्ट डिजायर खड़ी थी।

राकेश " तो आप टैक्सी, ऑटो क्यों नहीं कर लेती? आजकल तो मोबाइल पर ढेरों ऐप है जिससे टैक्सी मंगाई जा सकती है"।

"मेरा फोन डिस्चार्ज हो चुका है, कार चल नहीं रही है , यहां आस-पास कोई ऑटो नजर आ रहा है क्या आपको?"

प्रश्न का उत्तर भी प्रश्न से ही खत्म होता है।


 राकेश अपनी गाड़ी आगे बढ़ाने की कोशिश करता है " देखिए ! मुझे यूं भी देर हो चुकी है, आप टैक्सी या ऑटो ढूंढिए"!

"मेरा सोनू ! जीवन और मृत्यु के बीच झूल रहा है ,मेरा उसके पास जाना जरूरी है........ प्लीज ........आप के रास्ते पर ही पड़ता है मदद कीजिए मेरी" इस बार मिन्नत करती हुई वह नजर आईं।

आखिर हार कर उसके लिए दरवाजा खोल देता है वह धम्म से आकर उसके बगल में बैठ जाती है। उसका चेहरा गौर से देखता है ,अगर हैरानी या परेशानी के बिबं उसके चेहरे से हटा दिए जाएं तो, वह एक आकर्षक युवती है , बड़ी-बड़ी आंखें उसे और खूबसूरत बना रही है।

" मरने का इरादा था जो सड़क के बीचो बीच खड़ी हो गई थी आप! " राकेश ने झुंझलाते हुए कहा।

" नहीं ! करीब 20 मिनट से सब गाड़ियों को हाथ दिखा रही हूं मगर कोई रोक नहीं रहा था तो हार कर सड़क के बीचों बीच खड़ा होना पड़ा"।


हॉस्पिटल आ गया और वह उतरकर धन्यवाद कहे बिना ही अंदर भाग जाती है राकेश उसे जाते देखता ही रह जाता है।


इधर रेखा, राकेश की पत्नी मन ही मन भुनभुना

रही है " इनका तो रोज का हो गया है, 11:00 बजे से पहले घर आना अच्छा ही नहीं लगता, उस पर आधे समय तो खाना बाहर ही खा लिया जाता है...... पता नहीं मेरी, इनके जीवन में क्या जगह है ? कहीं कोई दूसरी तो नहीं आ गई........!"

ऐसी शंका दिन में कई बार अब रेखा को घेर लेती।

तभी गाड़ी रूकती है राकेश घर के अंदर आता है।

" क्या मां -पिताजी सो गए?"

" हां ! क्यों? क्या .....11:00 बजे तक उनको भी जगाऊं कि अपने बेटे के दर्शन कर लें "

" ओफ्फ! घर में आते ही तुम्हारा राग शुरू हो गया!" राकेश चिढ़कर बोला।

" अब खाना लगाऊं या बाहर से खा कर आए हो!"

किचन से रेखा ने आवाज दी।

"नहीं ! भूख नहीं कह कर वह अपने कमरे में चला गया"।

रेखा का भी मन अब मनाने का नहीं करता पहले शुरू शुरू में बड़ा मनुहार कर खाना खिला कर ही मानती थी मगर अब रोज की ही बात हो गई है रूठना मनाना।

फिर जिस तरह से राकेश व्यस्त रहता है पैसा कमाना, व बिज़नेस बढ़ाना उसके जीवन का बस यही मकसद हो गया है, तो रेखा भी जिद नहीं करती।


रेखा सुबह उठ खाना बना रही थी कि याद आया , राकेश का टिफिन नहीं है ।

आप कल टिफिन लाए थे? रेखा ने पूछा 

" हां ! वह गाड़ी में ही होगा! "

चाबी लेकर उसने गाड़ी का आगे का दरवाजा खोला मगर टिफिन की जगह 'एक लेडीस रुमाल ' मिला 

टिफिन पिछली सीट पर था, उसके दिमाग में शक के बादल और घिर गए।

 धीरे से पूछा " कल कोई और भी था..... तुम्हारे साथ" राकेश ने ना में सर हिलाया और नहाने चला।

 रात के 10:30 बज रहे हैं और आज भी राकेश उसी रोड से निकला तो वह युवती सड़क किनारे फिर खड़ी दिखी... राकेश की गाड़ी को देखते ही उसने हाथ दे दिया

 "आज क्या हो गया?"

 " गाड़ी ठीक नहीं हुई है अभी तक , हॉस्पिटल आपके रास्ते में ही पड़ता है......." 

 इससे ज्यादा उसे कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि राकेश ने गाड़ी का दरवाजा पहले ही खोल दिया था।

" आपके पति कहां है?  

 क्या मैं आपका नाम जान सकता हूं ?"  उसने हिचकिचाते हुए पूछा।

 " मेरा नाम सुधा है व मेरे पति इस दुनिया में .....नहीं है ! बीच में ही उसका गला रूंध गया था।

 " मुझे माफ कीजिए"।

 " नहीं कोई बात नहीं" 

 " आपके बेटे को क्या हुआ है?"

 " उसका एक्सीडेंट हो गया था ,बहुत खून बह गया उसे रोज खून चढ़ाया जाता है'।

" कौन सा रूम नंबर?"

 " रूम नंबर 301....."

 तभी हॉस्पिटल आ गया

 आज भी रेखा अपने पति का इंतजार कर रही है जैसे ही घड़ी के कांटों ने 11:00 बजाए उसका मन बुझ गया।

 रोज देर से आने की आदत की वजह से उनमें बात औपचारिक ही होती हैं ।

 दोनों के बीच फासला बढ़ता ही जा रहा है और दोनों ने ही कोशिश छोड़ दी है फासला पाटने की .....


तीन-चार दिन ऐसा ही चलता रहा 

आज सुबह जब राकेश ऑफिस निकलने को हुआ तभी उसका फोन बजे उठा....

" हेलो... हां! अमित क्या बात है ?"राकेश ने पूछा।

" सर ! मैं सिविल हॉस्पिटल में एडमिट हूं मुझे पीलिया हो गया है इसलिए 2 हफ्ते की छुट्टी चाहिए थी मैं ऑफिस नहीं आ पाऊंगा" ।


" ठीक है ! आराम करो" कहकर फोन रख दिया राकेश ने।

ऑफिस पहुंचा तो पुनीत मिल गया " यार वो अमित एडमिट हो गया, हॉस्पिटल में, चलो उस से मिल आते हैं" ।

" हां, हां बिल्कुल!" 

हॉस्पिटल में अमित से मिलने के बाद बाहर निकलते हुए राकेश को ध्यान आया कि सुधा का ४ साल का बेटा भी तो इसी हॉस्पिटल में एडमिट है।

" क्या नंबर बताया था 301 या 302 ? रिसेप्शन में पूछता हूं" ।

" क्या बात है?" पुनीत ने पूछा।

" अरे , मेरे एक जान पहचान वाले हैं उन्हें भी मिल लेता हूं"।

" हां , हां ज़रूर"।

" मिसेज सुधा का बेटा किस रूम नंबर में एडमिट है? शायद 301 बोला था"।

" मैं देखती हूं अभी, सर "और रिस्पेशनिट रजिस्टर में ढुंढ ने लगी।

" नहीं सर! 301 नंबर वाले बच्चे की..... वह 4 साल का बच्चा था ना" ?

"हां"

"उस बच्चे की तो मौत ......एक हफ्ते पहले ही हो गई थी"।

"क्या......

राकेश हकलाते हुए बोला ।

" हां सर! बहुत क्रिटिकल सिचुएशन थी उसकी जब लाए थे उसे बहुत खून की जरूरत थी और टाइम पर खून ना मिलने की वजह से........."

उसकी मां सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाई उसी दिन शाम को उन्हें भी हार्ट अटैक आ गया और उनकी मौत हो गई।


अब राकेश बुरी तरह कांप रहा था उसके मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे....

 तभी पुनीत बोला " अच्छा हां...... मुझे याद आया... मैं आया तो था , तेरे पास उस दिन सुबह.... मैंने तुझे बोला था.... बताया था कि किसी बच्चे को बी नेगेटिव खून की जरूरत है तेरा भी वही ग्रुप है तो चल खून देने आ जा मेरे साथ.....

पर शायद तुझे कुछ और काम था...." ।


तभी पुनीत ने गौर से राकेश को देखा तो 


" अरे ! अब तुझे क्या हुआ तेरे हाथ ठडे क्यों पड़ रहे हैं चेहरा पीला क्यों होता जा रहा है?"

बड़ी मुश्किल से राकेश के मुंह से बस इतना निकल निकला " मुझे..... घर ले चलो"।


पुनीत उसे घर छोड़कर "रेखा भाभी !अचानक इसकी तबीयत बिगड़ गई है डॉक्टर को बुलाऊं क्या?"

राकेश " तुम जाओ ......मुझे डॉक्टर के पास नहीं जाना .....

वह मुझे मार डालेगी....." ।

" ठीक है! मैं अभी निकलता हूं , कोई इमरजेंसी हो तो मुझे जरूर बताइएगा" ।

" जी भैया ! मैं देखती हूं"।

पुनीत को भेज कर रेखा , राकेश के कमरे में आती हैं राकेश उसे देखते ही उसके गले लग जाता है व बड़बड़ाता है, " मुझे बचा लो रेखा, मुझे बचा लो ! " 

" मैं हूं , आपके पास , मैं आपको कुछ नहीं होने दूंगी " ।

" कौन है आपका दुश्मन ? क्या हुआ है?"


"मुझे .....जैसे ही मुंह खोलता है.....बोलने के लिए दरवाजे पर सुधा कुटिल मुस्कान लेकर खड़ी है.... उसकी लाल लाल आंखें जैसे रक्त से भरी हो! फिर जोर से हंसती है ......." हाsssss हा ......अब तुम्हें कोई नहीं बचा पाएगा! तुमने मेरे बच्चे को नहीं बचाया......"।


" मुझे माफ कर दो...... मैं...... मैं ... मजबूर था.... उस दिन मेरा जरूरी प्रेजेंटेशन था"।

राकेश उसके सामने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगा।


" खूब समझती हूं .......यह सब..... यह कहो कि करोड़ों रुपए के फायदे के लिए, एक बच्चे की जान को तुच्छ समझा"!

" तुम जैसों का धर्म ईमान सब रुपए हैं, ....और ऐसा जीवन धरती पर बोझ है , जो किसी का जीवन ना बचा पाए, चलो ......तुम्हें .....मैं अपने साथ लेकर जाऊंगी....." वो जैसे राक्षसनी सी दहाड़ी।


" रेखा.... रेखा..... बचाओ ssssss बचाओsssssss मैं तुम्हारे साथ जीना चाहता हूं" ।


अभी तक सब हतप्रभ देखती हुई, रेखा अचानक जैसे होश में आई।

इधर सुधा , राकेश की तरफ लपकी तभी रेखा उसके सामने खड़ी हो गई।

वह धीरे से बोली " जानती हूं यह व्यक्ति पैसों के लिए पागल है पर मेरा सुहाग है यूं भी इस के मरने से तुम्हारा बेटा और तुम जिंदा नहीं हो सकते, पर ….... मेरा जीवन हमेशा के लिए अंधेरों के हवाले हो जाएगा" ।

" मैं मां बनने वाली हूं......


" ऐसे में अगर तुम कुछ कर सकती हूं तो बस इस बच्चे से उसके पिता को मत छीनो " उसने अपने पेट पर हाथ फिराते भी बोला।


राकेश , रेखा के पास पहुंच, उसके पेट से लिपट जाता है  " क्या ! क्या .....यह सच है रेखा! मैं कितना बुरा पति हूं" ।


दो पल के लिए सुधा ढ़िढक कर खिड़की से आसमान की तरफ देखती है तो अपने पति व बच्चे की परछाइयां नजर आती हैं.... नीचे एक प्यारा सा परिवार ' पति पत्नी और उनके बच्चे' को छोड़ ,ऊपर उड़ जाती है अपने पति और बच्चे से मिलने, शायद उसे मुक्ति मिल गई थी।



स्वरचित व मौलिक

अवंती श्रीवास्तव


 




 

 

 

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