कविता: चाटुकारिता या पत्रकारिता

Baised media and it's consequences

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Avanti Srivastav
Avanti Srivastav 16 Sep, 2020 | 1 min read



बिक गया मिडिया भी

अब तो बिक गया

ध्वंस हुआ तीसरा स्तंभ

भी लोकतंत्र का


पत्रकारिता बनी चाटुकारिता

बन गए सब काठ के यहां

सिर्फ शोर मचाना

अब मकसद रहा


शुद्ध लाभ की हर पल 

बस हो रही है गणना

न विचार न आचार रहे खुद के

रिमोट से चलने वाले खिलौने हो गए


लालच के असीमित गर्त में

इनके जमीर गोते खा रहे

दावे करे ये लेकिन बड़े बड़े

एक झुठ को बोल कर असंख्य बार

झुठ को ही सच बनाने में लगे


अब तो जनता ही उठा ले मशाल

सक्रिय हो इस अव्यवस्था को तोड़ दे

स्तंभ को फिर नवीन रंग दे

यह महत्वपूर्ण हिस्सा लोकतंत्र का

नई मान मर्यादा से फिर 

निडर हो अपने दम पर हो खड़ा।।



मौलिक व स्वरचित

अवंती श्रीवास्तव

इन्दौर


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Avanti Srivastav

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Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Shubha Pathak · 4 years ago last edited 4 years ago

    Bahut sahi likha👍

  • Madhu Kodanad · 4 years ago last edited 4 years ago

    Excellent...

  • Sampurna Sharma · 4 years ago last edited 4 years ago

    bahoot umda... waahhh!!!

  • Avanti Srivastav · 4 years ago last edited 4 years ago

    Thank you everyone

  • Sonnu Lamba · 4 years ago last edited 4 years ago

    It's really good. But I think chautha satmbh aayega.

  • Babita Kushwaha · 4 years ago last edited 4 years ago

    बहुत ही उम्दा👌

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