बिक गया मिडिया भी
अब तो बिक गया
ध्वंस हुआ तीसरा स्तंभ
भी लोकतंत्र का
पत्रकारिता बनी चाटुकारिता
बन गए सब काठ के यहां
सिर्फ शोर मचाना
अब मकसद रहा
शुद्ध लाभ की हर पल
बस हो रही है गणना
न विचार न आचार रहे खुद के
रिमोट से चलने वाले खिलौने हो गए
लालच के असीमित गर्त में
इनके जमीर गोते खा रहे
दावे करे ये लेकिन बड़े बड़े
एक झुठ को बोल कर असंख्य बार
झुठ को ही सच बनाने में लगे
अब तो जनता ही उठा ले मशाल
सक्रिय हो इस अव्यवस्था को तोड़ दे
स्तंभ को फिर नवीन रंग दे
यह महत्वपूर्ण हिस्सा लोकतंत्र का
नई मान मर्यादा से फिर
निडर हो अपने दम पर हो खड़ा।।
मौलिक व स्वरचित
अवंती श्रीवास्तव
इन्दौर
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Bahut sahi likha👍
Excellent...
bahoot umda... waahhh!!!
Thank you everyone
It's really good. But I think chautha satmbh aayega.
बहुत ही उम्दा👌
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