बचपन से एक सन्नाटा सा पसरा रहा अनु के जीवन में जिससे वह घबराने लगी थी। उसकी इस समस्या का हल डाक्टर ने किया, एक छोटी सी मशीन देकर उसके कानों को पुनर्जीवित कर दिया । मशीन की कार्यप्रणाली उसे समझा , मशीन थमा डॉक्टर ने कहा " स्वागत है अनु! ध्वनियों के संसार में "।
पहले एक प्रेम भरा मौन रहता अनु व अभिनव के बीच मगर अब वह उसे सुनना चाहती थी।
धीरे-धीरे उसे अभिनव के मीठे स्वर अपनी ओर खींच ले चले । प्यार भरे संवाद, मनभावन वार्तालाप में परिवर्तित हो गए ।अभिनव की मीठी स्वर लहरियां उसके कानों को सुकून दे जाती।
फिर वक्त ने करवट बदली अभिनव के स्वर अब उच्चतम लगते, ध्वनियां कांच की किंरचों सी उसके कानों में चुभती। अब बस कोलाहल ही पसरा रहता उसके बाहर व भीतर।
ध्वनि प्रदूषण को वह अंदर तक महसूस कर रही थी और अब उसे महसूस हुआ सन्नाटा इस प्रदूषण से कितना बेहतर था और इस से बचने का उसे एक ही उपाय मिला उसने मशीन निकाल कर हमेशा के लिए निरवता को गले लगा लिया।
स्वरचित व मौलिक
अवंति श्रीवास्तव
27/3/21
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Bhut Sundar
Bahut sundar
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