आज का दिन अपने सबसे खास दोस्त को समर्पित जिसके होने से ही मैं हूं ...... यानी मैं
कुछ अजीब लग रहा है पर यह बेहद जरूरी है की आप खुद को भी उतना प्यार करें जितना अपने परिवार व दोस्तों को करते हैं।
और आप अपने परिवार को तब तक खुश नहीं रख पाएंगे जब तक आप खुश नहीं रहेगें , आपके आत्मविश्वास में कमी होने से आपके बच्चों में भी वह कमी नजर आएगी।
इसलिए आज मैं अपने ऊपर प्यार लुटाने वाली हूं।
एक समय था जब अपनी तारीफ करना अपने मुंह मियां मिट्ठू कहलाता था। वक्त के साथ खुद की तारीफ करना जरूरी हो गया है ।
सेल्फी के जमाने में लोग दूसरों की तारीफ नहीं करते हैं इसलिए जरूरी हो गया है कि हम खुद अपनी खूबियां पहचान कर अपना आत्मविश्वास बढ़ाते रहें।
तो मैंने भी सोचा क्यों ना मैं भी अपने मुंह मियां मिट्ठू बन ही जाऊं?
वैसे इस विधा में मुझे महारथ हासिल है ।
मैं तो बचपन से ही जब कोई काम करती थी तो बैकग्राउंड में हमेशा यह गाना बजता रहता था " आइ एम द बेस्ट, आइ एम द बेस्ट" ।
तो चलिए..... आज आपको अपनी खूबियों से परिचय करवाती हूं।
पहली खूबी तो मुझे खाना बनाने का बहुत शौक है और मैं अमूमन सारे भारतीय चाइनीस व इटैलियन व्यंजन बहुत ही स्वादिष्ट व लजीज पका लेती हूं और इस लॉकडाउन में तो मैंने वह व्यंजन भी सीख लिए जो नहीं आते थे जब मैंने परफेक्ट गुलाब जामुन, पर्फेक्ट रसगुल्ले और परफेक्ट जलेबियां बनाई तो खुद को शाबाशी दे डाली.... वाह अवंती! वाह ! तुम तो हलवाई का भी बिजनेस छीन लो।
यहां तक कि कानपुर के फेमस ठग्गू के लड्डू भी मैंने घर पर ही बना लिए अब इस बात पर तो तारीफ करना बनता है ना!
दूसरा मेरा बच्चों के साथ लगाव
नन्हे मुन्ने बच्चे जिन्हें संभालना कोई बाएं हाथ का खेल नहीं वही काम मैं चुटकियों में कर देती हूं।
नन्हे शिशु भले ही जिद्दी हो, कितना भी रो रहा हो मेरे पास आते ही वह हंसने मुस्कुराने लगता है। नन्हे शिशु,छोटे या बड़े बच्चे सभी उम्र के बच्चों को मेरा साथ बहुत पसंद आता है यहां तक कि अपने परिवार में मैं " बिग मम्मा " के नाम से जानी जाती हूं और बिग मम्मा सब बच्चों की फेवरेट है ।
भोजन करना हो, खेलना हो या सोना हो बच्चे मेरे पास भागे चले आते हैं और कहानी सुनकर ,लोरी सुनकर मीठी नींद में खो जाते।
मेरे शुरुआती टीचिंग के दौरान भी मेरी कक्षा मेरे नाम से जानी जाती थी " अवंती मैम की क्लास " यह उपनाम मेरी कक्षा को मिलता था और वह कक्षा अलग से पहचानी जाती थी ।
मेरी कक्षा के बच्चे हमेशा प्रॉपर यूनिफॉर्म में, पढ़ने में और असेंबली की गतिविधियों में अव्वल ही रहते थे
मैंने शिक्षण कार्य केवल 1 साल के लिए किया था फिर भी बच्चों का मुझसे इतना लगाव था कि मैं बता नहीं सकती । जब मैं शादी होकर वापस गई अपने स्कूल में दोबारा .....
मैं कक्षा के दरवाजे के बाहर जैसे ही पहुंची तो जो टीचर पढ़ा रही थी उससे वह कक्षा कन्ट्रोल ही नहीं हुई वह खुद ही निकल आई और बोली " संभालो अपने बच्चों को"
और बच्चे मुझे देख कर इतने खुश थे की .....लिख नहीं पा रही हूं।
तीसरा मेरा हंस मुख व विनम्र स्वभाव
मेरा मनना है कि हम कितने भी बड़े ओहदे पर पहुंच जाएं कितना कुछ भी अर्जित कर लिया हो ......हमें विनम्र ही रहना चाहिए क्योंकि जो पेड़ फलों से लदा होता है वही झुकता है।
पिछले साल अपनी एक कहानी में व्यू बढ़ाने के लिए मैं अपनी कहानी को फेसबुक पेज पर प्रमोट कर रही थी
इसी कवायद में..... ज्यादा से ज्यादा व्यूज बढ़ाने के चक्कर में मैंने कई लेखिकाओं को टैग कर दिया
पर एक लेखिका को यह बात पसंद नहीं आई ।
वह मुझ पर क्रोधित हो गई वह मुझे बुरा भला कहने लगी मगर मैंने अपनी विनम्रता व शालीनता का परिचय देते हुए उन्हें धन्यवाद व माफी मांग ली ।
मेरा दिल दुखा, मुझे लगा यह इतना बड़ा भी अपराध नहीं था कि कोई इतना नाराज हो जाए ।
मगर कुछ दिनों बाद उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ उन्होंने फिर से फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी और मैंने उस दोस्त को खोने नहीं दिया ।
मैंने उनका हाथ थाम लिया और अब वह मेरी बहुत अच्छी दोस्त हैं।
एक बार फिर मैंने खुद को शाबाशी देते हुए कहा " अवंती यू आर द बेस्ट"!
मैं जो कुछ हूं केवल ...और केवल अपने माता-पिता की वजह से उनके संस्कार, उनके परवरिश के तरीके की वजह से।
यह जितनी तारीफें हैं वह मेरे माता पिता को ही समर्पित है।
उम्मीद है आपको मेरा यह ब्लॉग पसंद आएगा।
आपकी ब्लॉगर सखी
अवंती श्रीवास्तव
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