निशब्द हूं
स्तब्ध हूं
मैं आज के माहौल से त्रस्त हूं।
इसे न छूना, उसे ना लगाना हाथ
बार बार हाथ धोने से अब मैं पस्त हूं
लोगों की भीड़ से आतंकित हूं
कोई मेहमान घर आ जाएं
तो आशंकित हूं
अपने मित्रों को
जादू की झप्पी दूं या सैनेटाइस करूं
अब इस दुविधा में हूं
बंद हूं चारदीवारी में
दिल के किवाड़ भी बंद कर लिए
अपने प्रिय जनों के जाने पर
आखिरी बार भी दर्शन नहीं करे
ऐसे कठोर नियम कानूनों के आगे
अब मैं विहृल हूं
कुछ लोग मगर डट गए
इस नई जंग को लड़ने
करोना वॉरियर्स के आगे
मैं नतमस्तक हूं।
स्वरचित व मौलिक
अवंती श्रीवास्तव
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Bahut sundar
बहुत सही लिखा 😭
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