मैं आज का पिता हूं

पिता की बदलती भूमिका को बताती कविता

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Avanti Srivastav
Avanti Srivastav 26 Jun, 2022 | 1 min read
Poetry

मैं आज का पिता हूं

बच्चे की आने की आहट पर ही

होने वाली मां की तिमारदारी में लग जाता हूं

इस सोच से परे की वह लड़का होगा या लड़की! 

मैं बस पिता बन कर ही खुश हो जाता हूं

इस तरह होने वाले बच्चे से

एक रिश्ता कायम करता हूं।


मैं आज का पिता हूं

अस्पताल की गैलरी में खड़े रहकर नहीं,

लेबर रूम में मां का हाथ पकड़

उसे संत्वाना देता हूं

बच्चे की पहली किलकारी मैं भी सुनता हूं।


मैं आज का पिता हूं

कदम कदम पर नई मां का हाथ बंटाता हूं,

पोटी ,शु शु से लेकर डायपर बदलने तक

मैं हर काम सहजता से करता हूं।


मैं आज का पिता हूं

मेरे लिए मेरे बच्चे को नहलाना तैयार करना,

स्टॉप पर उसका इंतजार करना

उतना ही जरूरी है जितना ऑफिस में

कोई फाइल डेडलाइन से पहले पूरी करना।

मैं आज का पिता हूं

मैं वो आसमान हूं जिसमें बेटियां अपने पंख

फैला कर किसी भी ख्वाब का पीछा कर सकती हैं मैं उन्हें वह आजादी और वह साहस देता हूं

अगर सोच लिया तो कुछ भी नामुमकिन नहीं।


मैं आज का पिता हूं

आत्मरक्षा के गुर अपनी बेटी को सिखाता हूं

अपने पांव पर खड़े होना

उसकी नियति ही नहीं उसकी मर्जी है

वह स्कूटी ,कार से लेकर हवाई जहाज तक

कुछ भी चला सकती है

अपनी जिंदगी की बागडोर

अपने हाथ में रख सकती हैं।


मैं आज का पिता हूं

केवल बेटियां ही नहीं बहुओं को भी

वही माहौल देता हूं

केवल बेटों से नहीं बल्कि बहूओं और बेटियों से म्युचुअल फंड ,एलआईसी पॉलिसी,बैंक डिपॉजिट्स के बारे में चर्चा करता हूं

क्योंकि जीवन में अपने पैसे सहेजना

और उन्हें सुरक्षित रखना भी इनका दायित्व है।


मैं आज का पिता हूं

जब बेटियां और बहूएं नई-नई उपलब्धियां हासिल करती हैं

समाज को एक नई दिशा देती हैं, 

अपना नाम कमाती है

तब मैं अपना सीना चौड़ा करके सब को कहता हूं


" म्हारी छोरियां छोरों से कम है कै

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