चल पथ तुम प्रशस्त कर
अब ढील तो रहने ही दे
अव्यवस्थाओं का अब
मुंह बस नोंच ले।
क्या करें, कैसे करें
इस संशय को छोड़ दे
ठान ले निडर बन और
बलात्कारियों को ठोक दे।
विनतियों और अर्जियों की
अब बस उम्र गई
कानून, न्याय ,व्यवस्था के
सभी प्रहरी खो गए।
आंख में पट्टी बांधे
न्याय की देवी सो रही
भरकर अब हुंकार
तु उसको जगा
कर तांडव के खुल जाए
तीसरा नेत्र शिव का
स्वरचित
अवंती श्रीवास्तव
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