कर्त्तव्य परायणता से पकड़े
जियो और जीने दो की राह
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कर्तव्य कई तरह के होते हैं लेकिन आज जिस कर्तव्य की बात हो रही वह है नागरिको के कर्तव्य की।देश के नागरिक होने के नाते आपके कर्तव्य क्या है ?क्या पालन हो रहे है? शायद नहीं और हो भी रहे दोनो ही स्थिति है।
गलत कामो के प्रति आवाज उठाना, घूसखोरो से सावधान रहना,आपदा की स्थिति में मदद पहुँचाना,समस्याओ पर विचार करना,कुव्यवस्थाओ पर आवाज उठाना,आवरू की रक्षा करना, जागरूकता फैलाना आदि कई ऐसे कार्य है जो नागरिक कर्तव्य है पर पालन कितने होते है यह बात छिपी नही है।लेकिन कुछ लोग आज भी इन सभी नियमों का पालन करते है जिससे हमारा देश और समाज सुरक्षित रहता है।चाहे वह पुलिस हो सेना हो नागरिक हो लेखक हो पत्रकार हो आम लोग हो डाक्टर हो वकील हो जज हो ड्राइवर हो सामाजिक कार्यअकर्ता हो इन्होने देश और नागरिक कर्तव्यो का पालन किया है। सही मायने में मानव सेवा ही नागरिक कर्तव्य है । मानव प्रेम ही प्रेम है ।मानव के प्रति श्रद्धा ही भक्ति।लेकिन दुर्भाग्य उन लोगो का जो मानव के शत्रु बनकर अपनी उपेक्षा करवाते हैं।
कर्त्तव्य परायणता से ही वो मार्ग प्रशस्त हो सकते है जिसे हम "जियो और जीने दो" कहते हैं । यह बात तो सामाजिक परिवेश और दैनिक जीवन में होनी ही चाहिए और शायद होता भी यही है। लेकिन कुछ विलासिता पर सवार लोग इसे लुटो और लुटने दो की मानसिकता के साथ ही घरो से निकलते हैं जिनका सामना नित ही जियो और जीने दो से होती है।
कहते है जीत हमेशा सत्य और सही रास्तो पर चलने वालों को ही मिली है। सत्य ही वो रास्ता है जो जीवन का आधार है। इसके राह कठिन है चकाचौंध से दूर एक सरल और सहज पगडंडी, जिसमें जीवन की सवारी गाड़ी से नहीं पैदल करनी होती है,जबकि लुटो और लुटने दो के रास्ते तेज दौड़ती है लेकिन हमेशा एक्सीडेंट हो जाती है ।वह मंजिल तक कभी पहुँचती ही नहीं।
आज मानवता का दम घुट रहा है। सभी तेज सवारी करने को ललायित है, लेकिन बहुत से ऐसे लोग है जो आज के इस बदलते युग में भी जियो और जीने दो को अपना सौभाग्य मानते हैं ऐसे लोग ही मंजिल तक पहुँच पाते हैं।
अर्थात हमारे धर्म भी यही कहते है शास्त्र, कुरान, बायबिल सभी का यह कथन है मानव सेवा ही सर्वोत्तम सेवा है ।मानव ही इस पृथ्वी पर बुद्धिजीवी है जो कठिन से कठिन कार्य कर सकता है।वह चाहे तो चंद लुटो और लुटने दो को भी सबक सिखाकर जियो और जीने दो जैसा बना सकता है।
आज के इस वैज्ञानिक युग में किताबो, साहित्य संस्कृति और सभ्यता पीछे छुट रही जबकि पाश्चात प्रवृत्ति हावी होने लगी है। ऐसे में जियो और जीने दो को आर्दश बने रहना एक चुनौती है। एक
सामाजिक उदघोष के साथ पूर्वजो के संकल्पो को याद रखना ही होगा जिन्होने हमें यह काया देकर सिखाया था कि बेटा खुद भी जियो और औरो को भी जीने दो।
आशुतोष कुमार
पटना बिहार
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बढ़िया
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