इस आधुनिक काल में धरती पर डाॅक्टर को भगवान की संज्ञा दी गयी है।वे जीवन और मौत से रोजाना लड़ते हैं, शोध करते हैं, अपनी जीवन को लोगों के जीवन में महसूस करते हैं।
काश! मैं भी डाॅक्टर होता तो सारा दिन उनके इलाज को प्रयत्नशील रहता जो अर्थ और धन से लाचार हैं।वैसे कई लोग हैं जो डाॅक्टर और दवा के वगैर अस्पताल नहीं जा पाते और धीरे धीरे मौत के आगोश में समा जाते हैं ।
मैं ऐसे अस्पताल खोलता जहाँ सभी के लिए समान इलाज संभव हो और वे निश्चिंत होकर वेधड़क अस्पताल आ जा सकें ।एक झिझक है जो गरीबी के लिए अभिशाप है वह तोड़कर मैं, ईमानदारी पूर्वक जागरूकता लाने के लिए प्रयत्न करता।
यदि मैं डाॅक्टर होता तो जाँच का रेट कम रखता ।साफ सफाई और सस्ती दवाई ही ज्यादा लिखता।उन्हें व्यायाम और दूसरे तरह की विधि से अवगत कराता ताकि उनका ह्यूमिलिटी बूस्टर मजबूत रहे। सभी को पौष्टिक सामग्री की ज्ञान नहीं है कौन सी चीज कैसे खायी जाय इस विषय में जानकारी देता जिससे वे बीमार कम पड़ते।
स्वास्थ सबसे अहम मसला है हमारे यहाँ आज भी जरूरत से कम डाॅक्टर हैं।कम अस्पताल और बेडरूम हैं जबकि दिन प्रतिदिन जनसंख्या के बोझ बीमारी का बोझ बढ़ता ही जा रहा है।इन सभी समस्याओं का अगर कहीं भी समाधान है तो वह है जागरूकता।जागरूकता से इस बढ़ते स्तर को कम किया जा सकता है। जैसे अभी हमलोगों ने कोरोना के लिए मन से जागरूक होकर उस पर नियंत्रण बनाने का प्रयास किया है। उसी तरह हमेशा प्रयास करता और दूसरे डाॅक्टर को भी प्रेरित करता।
समय पर खाना, समय पर सोना टहलना ये सभी चीजें बहुत सी बीमारियों का खुद इलाज है।इसका समुचित ज्ञान देकर मैं एक डाॅक्टर का कर्तव्य निभाता।आज कल तो सिर्फ़ जांच और दवाई फीस से लोगों के प्रेसर बढ़ जाते हैं। मैं इन सभी चीजों का सही और उचित होने पर ही टेस्ट करता।
अतः अगर मैं डाक्टर नहीं भी हूँ तो भी अपना फर्ज निभाता रहूँगा और लोगो को स्वास्थ्य के लिए प्रेरित करता रहूँगा ।
आशुतोष
पटना बिहार
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बहुत बढ़िया 👏👏
संदेशप्रद रचना
सभी का आभार यह एक मार्मिक अभिव्यक्ति है जो आपको एहसास कराया है मजबूरी कितनी भयावह है।
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