ढूंढो-ढूंढो रे नौकरिया दूजा प्रदेश में
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लाक डाउन में ढील के साथ हीं बिहार की फिजाओं में भी चुनावी रंग चढ़ने लगी है।सभी अपनी अपनी बीन के साथ मैदान में उतरते नजर आएँगे। लेकिन आज भी विपक्ष को एक ऐसे चेहरे की तालाश है जो नीतीश जी के मुकाबले में टक्कर दे सके।फिलहाल तो ऐसा चेहरा और इमेज दूर-दूर तक दिखाईफ नहीं दे रहा शायद यह वक्त के गर्भ में छिपा है जो समय आने पर उभर सकता है।
2020 का यह विधान सभा चुनाव कई मायने में अहम साबित होने वाला माना जा रहा है , क्योंकि यह एक सीढ़ी है जिसका सीधे तौर पर दिल्ली की सत्ता में बडी हिस्सेदारी के साथ प्रतिनिधित्व देने की क्षमता भी कई दशकों से बना हुआ है। राजनीतिक उम्मीदवार अपनी अपनी दावेदारी पेश करने लगे हैं।
यह चुनाव इतना आसान भी नही होगा एक तरफ वेरोजगारी की समस्या मुँह चिढा रही तो वही कोरोना ने मन को झकझोर रखा है राहत और मदद एक राजनीतिक हथियार के तौर पर भुनाने की कोशिशें भी होगी ।उद्योग का नहीं लगना विफलता है तो तमाम कुरीतियों के खिलाफ सरकार की प्रतिबद्धता भी। विकास के कई आयाम के बीच शकून के क्षण भी और यही क्षण सरकार के सफलता और वेदाग छवि शायद विरोधियों को वेचैन करती नजर आती हैं। लेकिन लोग ढूढों ढूढ़ो रे नौकरिया के लिए जरूर ठोकर खा रहे हैं। जो मौजूदा सरकार के लिए चिंता की लकीरें खींचती है।अभी भी काफी वक्त है इन समयो में भी बहुत कुछ देखने को मिल सकता जो शायद युवाओ को लुभाने वाला हो सकता है।
वैसे तो तीसरे विकल्प की तालाश तो प्रत्येक चुनाव में होते रहे हैं लेकिन निजी स्वार्थ के चक्कर में वह कभी वजूद बनाने में सफल नही हुई है।जहाँ तक इस चुनाव की बात है तो ऐसी संभावना तो है पर इसका स्वरूप यदि समय रहते न दिया गया तो शायद देर हो जायेगी।
बढता पलायन,बाढ से निजात,किसान कृषि एवं रोजगार के लिए बात करने वाले नेताओ को ज्यादा तरजीह मिल सकती है।जिसके लिए विपक्ष को एक ऐसे चेहरे की जरूरत होगी जो सभी को साथ लेकर चल सके।
जातीय समीकरण और गोलबंदी फिलहाल तो नजर से परे है लोगो को अब काम देने वाला सरकार चाहिए न कि जात बताने वाला यह बात सभी समझने लगे हैं फिर भी चुनाव हो और जाति की बात न हो ये कैसे संभव है।इतिहास गवाह है जात पात की राजनीति के लिए मशहूर बिहार क्या फिर उसी करवट जाएगा? तो पढ़े लिखे होने का कोई मतलब नहीं बनता? फिलहाल सब वक्त के साथ खुद सामने आएँगे।लेकिन जनता को यह जरूर तय करना है कि कौन काम सही कर सकता है और किसके हाथ में वह सुरक्षित है।वरना जो अब तक होता रहा है।ढूंढो ढूंढो रे नौकरिया दूजा प्रदेश में।
"आशुतोष"
पटना बिहार
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