अकेलापन

समय और सूनापन

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Ashutosh kumar  Jha
Ashutosh kumar Jha 12 Aug, 2020 | 0 mins read

कृष्ण जन्मोत्सव की वह रात थी ।मेले का आयोजन था तेज रोशनी में बाजार सजी हुई थी ।कहीं भजन कहीं कीर्तन नाचते गाते लोग भक्ति सागर में डूबे हुए थे।मैं उसी रास्ते से आ रहा था तो थोड़ी देर मन बहलाने के लिए रूककर वहाँ के दर्शक दीर्घा में एक कोने में खड़ होकर यह अदभूत भक्ति नजारा ऑखो में कैद करने लगा।

मैं अभी देख ही रहा था कि मुझे किसी ने आवाज दी एक जानी पहचानी स्वर कानो में पड़ते ही मैं पलटा अरे मालती तुम यहाँ कैसे? मैंने पूछा! मालती बोली घर में बोर हो रही थी इसलिए चली आयी मेरा घर तो पास ही है।बच्चो ने भी जिद कर दी थी।मैंने पूछा बच्चे इतने बड़े हो गये कि जीद करने लगे हैं? उसने कहा हाँ किस दुनियाँ हो तुम वासु मेरे शादी के 14 वर्ष हो गये इतना सुनते ही मेरे कान खड़े हो गये मैं जैसे फ्रीज हो गया । मुझे अपने आप पर थोड़ी खीझ भी आयी ।उसने पूछा तुम बताव तुमने शादी की या अभी तक? मैं क्या कहता उसे और कैसे कहता इसलिए कहा हाँ कीं।उसने कहा मुझे तुम्हारी पत्नी से मिलना है।तुम्हे एतराज तो नहीं ।मैंने कहा भला मुझे क्या ऐतराज हो सकता है ठीक है मैं कल तुम्हारे घर आती हूँ ।कहते हुए वह आगे चली गयी।मैं हक्का बक्का देखता ही रह गया

मैं काफी चिन्ता में पड गया था कल क्या होगा झूठ भारी लग रहे थे।मैं झूठ बोलकर फंस गया था।अब मुझे डर सता रही थी की जो सच मैं अपने सीने में दबाकर आज चौदह वर्षो से जी रहा हूँ। वह भेद न खुल जाय।

अगले दिन सुबह से शाम हुई गोधुली बेला थी ।मैं अपने घर पर था इतने में दरवाजे पर नाॅक हुई वह मालती ही थी गजब की सुन्दर लग रही थी।साड़ी में वह और भी खूबसूरत लग रही थी।मैंने कहा आओ मालती इस गरीब खाने में तुम्हारा स्वागत है।मालती ने चारों तरफ ऑखे दौड़ाई किसी को न पाकर मुझसे कहा तुम मुझसे इतना झूठ बोलोगे मुझे पता न था उसके लहजे सख्त थे। मैं सामना नही कर पा रहा था।मैंने बात बदलते हुए कहा शर्वत बनाऊँ बैठो आराम से फिर बात करते हैं ।

मालती और मैं बचपन से साथ रहे थे एक दूसरे को खूब जानते थे लेकिन इस वक्त वह भी मेरी इस अकेलेपन को देखकर विचलित थी।शायद उसे आभास होने लगा था इसकी वजह क्या है? मैंने उसके मन में उठते अनगिणत सवालो को महसूस किया है।जो अपने आप में एक प्रश्न है।


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