मत पूछो
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सबका साथ विकास सोचकर,सबका ही उद्धार किया।
चुनाव रैलियों में जाने से, भी उसने इनकार किया।
कितने पप्पू लटक रहे थे दसवीं - पास के चक्कर में,
कोरोना ने उन सबका भी, देखो बेड़ा पार किया।
शमशानो पर जाकर आखिर क्योंकर लाशें गिनते हो?
मत सोचो की इसने अब तक कितना नरसंहार किया।
जितना दलदल होगा यारों उतनी पंकज नाल बढ़ेगी,
कभी न कहना की उसने तो काम बड़ा धिक्कार किया।
खुद सोचो अब सांसे अपनी, कैसे 'अरुण' बचाना है,
उसने तो पेड़ो का सौदा देखो सौ - सौ बार किया।
अरुण शुक्ल अर्जुन
प्रयागराज
(पूर्णतः मौलिक स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित)
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बहुत अच्छा
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