कुछ तो बेहतर और हुआ था

प्रकृति प्रदत्त चीजें सभी सोभनीय एवं सुरम्य होती हैं वह हमेशा आंखों को सुखदाई एवं जीवन के लिए कल्याणकारी होती हैं फिर भी इंसान के नजरिए का फर्क होता है जो कि वही चीजें कभी कभी ज्यादा रोमांचकारी एवं सुरम्य प्रतीत होती हैं आज ईसी प्रसंग पर आधारित मेरी एक छोटी सी कविता

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ARUN SHUKLA Arjun
ARUN SHUKLA Arjun 23 Jun, 2020 | 1 min read

अलिखित कविता के जैसे ही, मन ख़्वाब़ो में उसे छुआ था। 

पर यह आज अचानक उसमें,कुछ तो ब़ेहतर और हुआ था।

       मैंने अब तक ज़ब-ज़ब देखा,

       सरल,सौम्य,शालीन दिखी थी।

       नयनों में थी चपल उजासी,

       अधरों पर मुस्कान दिखी थी। 

       मुख-मंडल पर शुभ्र कौमुदी, 

       शशि-समान जब मुख़र हुई, 

       लज़्ज़ा का पुट लेकर दृग में,

       तब-तब नीचे नज़र झुकी थी।


उदीप्त कल्पना में शायद मन, हो आच्छादित उसे छुआ था।

पर यह आज अचानक उसमें,कुछ तो बेहतर और हुआ था।


     अति सरल-हृदय चंचल-मन लेकर,

      मृदु- वचनों से वह बोली थी।

     गरल-सदृश शठ कुटिल हृदय में, 

      शब्द - रसामृत वह घोली थी।

        तार- तार मन का गिटार

       जो उलझ गया था रिंदों में।

      उसको सुलझा कर दी झंकृति,

        इतनी उदार वह भोली थी। 


वो अस्ल जिंदगी के लम्हे थे या फिर केवल एक ज़ुआ था?

पर यह आज़ अचानक उसमें,कुछ तो ब़ेहतर और हुआ था।


        अरुण शुक्ल अर्जुन 

          प्रयागराज 

(पूर्णत: मौलिक स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित)

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ARUN SHUKLA Arjun

arunshukla

Comments

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  • Kumar Sandeep · 4 years ago last edited 4 years ago

    काबिलेतारीफ रचना

  • Babita Kushwaha · 4 years ago last edited 4 years ago

    Bahut badiya

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