आलेख- निश्छल प्रेम

प्रेम शब्दों से नहीं बल्कि एहसासों से परिभाषित होता है।

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ARUN SHUKLA Arjun
ARUN SHUKLA Arjun 26 Jul, 2020 | 1 min read

मित्रों!

इश्क़ प्यार मोहब्ब़त जैसे शब्द कानों में पड़ते ही एक जिज्ञासा रूपी तरंग मन में दौड़ जाती है। हम सोचते हैं कि आखिर यह है क्या? 

इसका स्वरूप कैसा है? 

इसको किसने बनाया?

क्यों बनाया?

 इसका मूलभूत उद्देश्य क्या है?

वगैरह-वगैरह!

 हालांकि आज तक उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर को पूर्ण रूप से परिभाषित नहीं किया जा सका है, बरन यह आज भी महत्वपूर्ण चिंतन का विषय है।

हालांकि इसकी परिभाषा स्वरूप उद्देश्य आदि से मैं भी पूर्णतया अनभिज्ञ हूं,

फिर भी निश्छल प्रेम के एक छोटे से पक्ष को उद्घाटित करती हुई हमारी कुछ पंक्तियां हैं जिसे मैं आप सबके समक्ष रखता हूंँ, 

मित्रों इश्क के दौरान प्रेमी जोड़ों में आपसी नोकझोंक होना स्वभाविक है! कहीं ना कहीं यह नोकझोंक भी उनके प्यार को और भी ज्यादा निखार कर आलोकित करता है।

 ऐसे ही एक छोटे से मधुर नोकझोंक के बाद एक प्रेमी जोड़े ने कुछ दो दिनों तक आपस में बात नहीं की। हालांकि इस दौरान दोनों का मन बहुत ही पीड़ित एवं व्यथित था।दोनों के मन में यह भावना थी कि काश वो बोल देते... या 

काश वो बोल देती..........। 

फिर दो दिन बाद वह अपने मिलाप वाले स्थान पर बिना एक दूसरे को बताए ही बेसब्री से पहुंच जाते हैं।और आश्चर्यचकित एवं प्रेमातुर भाव से एक दूसरे के पास बैठ जाते हैं।उन दोनों में बात यही थी कि कौन पहले बोलेगा, हालांकि स्वभावत: मन से उच्छृंखल प्रेमी से ना रहा गया और वह बड़े चतुराई के साथ कुछ बातें यूँ कही कि जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। यानी कि हम पहले बोल भी दें और यूं प्रतीत हो कि हमने किसी दूसरे से बात की।

 ऐसे में प्रेमी अपनी प्रेमिका के पास बैठा बैठा जो पंक्तियां गुनगुनाया उसकी उस मन: स्थित तक कवि की कल्पना कुछ इस प्रकार पहुंचती है,


प्रेमी उवाच-


गुप चुप गुप चुप बैठे हो क्यों,बोलो आखिर बात है क्या!

हम नैन बिछाए बैठे प्रतिपल, मत पूछों दिन-रात है क्या?

इतने दिन के बाद हमारा मिलन हुआ है मुश्किल से,

पहले तुम ही बोल दो प्रियतम,इसमें शह या मात है क्या?


प्रेमिका भी कम वाकपटु नहीं थी। उसने भी उतनी ही कुशलता के साथ बहुत ही माकूल जवाब दिया और फिर दोनों में पूर्ण प्रायश्चित भाव के साथ स्वयं को ही दोषी मानते हुए पूर्ववत् सौंदर्यपरक मिलाप हो गया।


प्रेमिका उवाच-


अब तो तुमने बोल दिया प्रिय, उत्तर देना बाकी है।

तुम चतुराई से बात कह दिया, मर्यादा भी ढाकी है।

इतनी बात समझ लो साजन मैं तेरी थी तेरी हूँ,

ये छोटे-मोटे झगड़े भी तो, गहरे प्यार की झांकी है।


अरुण शुक्ल अर्जुन

प्रयागराज 

(पूर्णत:मौलिक स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित)

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ARUN SHUKLA Arjun

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  • Kumar Sandeep · 5 years ago last edited 5 years ago

    भावनाओं से ओतप्रोत उम्दा सृजन

  • ARUN SHUKLA Arjun · 5 years ago last edited 5 years ago

    बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय अनुज

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