शर्तें मुनासिब हो नहीं सकतीं।

पेशे-खिदमत है इक मत्ला और इक शेर आप सबके मोहब्ब़त के हवाले!

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ARUN SHUKLA Arjun
ARUN SHUKLA Arjun 03 Oct, 2021 | 1 min read
Sandeep

ज़हन में झूठ की परतें, मुनासिब हो नहीं सकतीं।

महल के नींव में गर्तें, मुनासिब हो नहीं सकतीं।


ये चाहत राग है, अनुराग है, सर्वस्व - अर्पण है,

मोहब़्ब़त में कभी शर्तें, मुनासिब हो नहीं सकतीं।

अरुण शुक्ल अर्जुन

प्रयागराज

(पूर्णतः मौलिक स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित)

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ARUN SHUKLA Arjun

arunshukla

Comments

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  • Surabhi sharma · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत खूब

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत खूब सर

  • Ruchika Rai · 3 years ago last edited 3 years ago

    वाह

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