ग़ज़ल

प्रेम अदृश्य,अनंत ,अनित्य एवं निराकार है। इसकी शुरुआत कब कहां कैसे होगी पूर्व विदित नहीं होता। यह तो एक अप्रत्याशित मनोभाव का ऐसा चमत्कार है जो कि व्यक्ति को एहसास ही नहीं होने देता कि वह प्रेम के मार्ग पर चल रहा है।

Originally published in hi
Reactions 0
538
ARUN SHUKLA Arjun
ARUN SHUKLA Arjun 13 Jul, 2020 | 1 min read

ग़ज़ल

****************************

अक्सर यही प्यार का सिलसिला है।

ज़हां ज़ो न चाहा वहीं सब मिला है।


न ज़ाना न समझा न सोचा कभी था,

मोहब्ब़त का ए गुल वहीं तो खिला है।


ये रिश्ते ये नाते करम से है बनते, 

मग़र ब़ेवज़ह उनको हम से गिला है।


मुझे तुम अकेला कभी ना समझना,

मेरे साथ तो दर्द का काफ़िला है।


इश्क़ होता मुकम्मल है रब़ की दुआ से

नहीं इसमें 'अर्जुन' का कुछ भी सिला है।


अरुण शुक्ल अर्जुन

रत्यौरा करपिया कोराँव प्रयागराज 

(पूर्णत: मौलिक स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित)

0 likes

Published By

ARUN SHUKLA Arjun

arunshukla

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.