ग़ज़ल
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क्यों ऐसा हुआ तू खुदा बन गई?
पहर आठ तेरा भज़न गा रहा हूंँ।
कभी तेरी मुस्कान को याद करके,
तेरे प्यार में हो मगन गा रहा हूंँ।
लगे पंख मेरे ग़ज़ल गीत को भी,
धरा से पहुंचकर गगन गा रहा हूंँ।
तिरे ज़ुल्फ़ गज़रों में खोकर कभी मैं,
मधुप मस्त मन से चमन गा रहा हूंँ।
लौट भी आइए अब मुनासिब नहीं,
करके ज़ज्ब़ात अपने दमन गा रहा हूंँ।
ये कैसी बला आ गई अब़ ज़हांँ में,
हुआ कैद तब से भवन गा रहा हूंँ।
मुकम्मल तू कर दे मेरे नज़्म को मां!
अरुण-वन्दना कर नमन गा रहा हूंँ।
अरुण शुक्ल अर्जुन
रत्यौरा करपिया कोराँव प्रयागराज
(पूर्णत: मौलिक स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित)
Comments
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सर ये ग़ज़ल नहीं है , यह बहर में नहीं है , और मतला में रदीफ और काफिया का इस्तेमाल नहीं किया
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