सफर आजादी का

मित्रों! दुख भरी पीड़ादायक गुलामी से हर्ष उन्माद प्रदान करने वाली स्वतंत्रता दिवस तक का सफर हमारे बलिदानी वीरों के त्याग एवं समर्पण का प्रतिफल रहा है। आज स्वतंत्रता दिवस पर हम उन बलिदानी वीरों के शौर्य उत्साह एवं बलिदान के प्रति नतमस्तक भाव से कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं, एवं उनके परिवार को वर्तमान भारतीय सैनिक जो सीमा पर डट कर अपने प्राणों की बाजी लगाते हुए दिन-रात धूप और सा तूफान गर्मी सर्दी बर्फीली हवाओं के बीच भी पूरे सौर एवं साहस के साथ तैनात हैं, उनको भी मेरा सादर नमन!🙏🙏🙏🙏🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

Originally published in hi
Reactions 0
565
ARUN SHUKLA Arjun
ARUN SHUKLA Arjun 15 Aug, 2020 | 1 min read
Sandeep

सफर आजादी का

******************************

बात गुलामी के दिन की बस, चंद पंक्ति में करते हैं।

हुत-अमर हो गए जो धरती पर,उनका वर्णन करते हैं।

फिरंगियों के दुराचरण से व्याकुल प्रजा दुखारी थी।

मेहनतकश खेतिहर किसान भी, जमींदार से डरते है।


जब दिल्ली मे फिरंगियों ने, ध्वज अपना लहराए थे।

काला पानी भेज जफर को, सत्ता फिर हथियाये थे।

कोतवाल धन सिंह मंगल ने फिर शमशीर सजाई थी,

बारात निकाली स्वतंत्रता की, मृत्यु वरण कर लाए थे।


स्वतंत्रता की आग हवा मे, घुलती गई फिजाओं में।

क्या छोटे क्या बड़े सभी में, नशा चढ़ा दादाओं में।

हिंदुस्तानी सैनिक बल का भी ज़मीर तब जाग उठा,

आजादी के भीषण रण में, कस ली कमर युवाओं ने।


स्वतंत्रता की नदी बही थी, मुक्ति- सिंधु से मिलना था।

इस भरत वंश में आजादी का, पुष्प दुबारा खिलना था।

बंगभूमि से दिल्ली तक फिर,लहर क्रान्ति की फैल गई,

झांसी की रानी के सम्मुख, दुश्मन का पांव उखड़ना था।


फिर आगे चलकर खुदीराम ने मोर्चा खूब संभाला था।

डगलस के बग्घी पर डट कर वो पहला गोला डाला था।

हाथ लिए गीता को फिर वह फांसी खुद स्वीकार लिया।

बंदिनी मुक्त हो भारत माँ, अरमान हृदय में पाला था।


तिलक बोस तात्या टोपे का, लक्ष्य हृदय आजादी था।

सुखदेव भगत सिंह को करना, अंग्रेज राज बर्बादी था।

कितनो ने निज शीश कटाकर क्रांति यज्ञ में डाल दिया,

तब राष्ट्र धर्म था एक सभी का, हर बच्चा जेहादी था।


आंदोलन हो गया प्रखर हर, राज्य क्षेत्र गलियारों में।

सत्याग्रही हुए कितने तब, सविनय पूर्व विचारों में।

फिरंगियों ने असहयोग की धार प्रबल बढ़ते देखा,

समझौते की राजनीति तब, बदल गई व्यवहारों में।


सूनी हुई मांग कितनों की, कितने घर गमगीन हुए?

कितनों के सर से हटा छत्र, कितने पुत्र - विहीन हुए।

पर नहीं डिगे वो वीर जरा भी छीन लिए आजादी को,

छक्के छुड़ाक्ष दिए गोरों के, खुद ही सत्तासीन हुए।


मिल गई अंत में आजादी, अंग्रेज राज्य बर्बाद हुआ।

पन्द्रह अगस्त सैतालिस को, हिंद वतन आजाद हुआ।

होली और दिवाली जैसी खुशियां उस दिन छाई थीं,

लहर तिरंगा धूमधाम से, लाल किला आबाद हुआ।


रौनक थी हर ओर ईद की, मिलन दिखाई देता था।

जय - जय भारत माता का, उद्घोष सुनाई देता था।

वंदे मातरम - वंदे मातरम, जयतु भारती का नारा,

तब बच्चों के मुंह से भी, जय हिंद सुनाई देता था।


वीर सैनिकों पर अपने अभिमान बड़ा ही होता है।

वो वहां जागते सीमा पर संसार नींद भर सोता है।

पक्षी गण भी कलरव कर चुपचाप नींद सो जाते हैं,

पर सैनिक को नींद कहाँ, वह भार धरा का ढोता है।


अरुण शुक्ल अर्जुन

  कोरांव प्रयागराज

(पूर्णत: मौलिक स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित)

0 likes

Published By

ARUN SHUKLA Arjun

arunshukla

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Kumar Sandeep · 4 years ago last edited 4 years ago

    सुंदर रचना

Please Login or Create a free account to comment.