ग़ज़ल
अंदाज़-ए-दीवाना नहीं जानता हूं।
ना रूठो, मनाना नहीं जानता हूं।
हमेशा पलट कर मुझे देखने का,
वो किस्सा सुनाना नहीं जानता हूं।
गली ना मुहल्ला ना राहें पता हैं,
तेरा आशियाना नहीं जानता हूं।
दिल के फसाने ज़ुबां तक तो लाओ,
मै ख़ुद से जताना नहीं जानता हूं।
तुम्ही इक वज़ह हो मेरे आंसुओ की,
ये तुमसे बताना नहीं जानता हूं।
पता है तुम्हे सब मेरे दिल की बातें,
मै आंसू छिपाना नहीं जानता हूं।
न बोला करो ग़म छिपाने को 'अर्जुन',
सब्र को बांध-पाना नहीं जानता हूं।
अरुण शुक्ल 'अर्जुन'
रत्यौरा करपिया, कोरांव,
प्रयागराज
(पूर्णत: मौलिक स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित)
Comments
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बहुत खूब
कृपया अन्य प्लेटफार्म से संबंधित तस्लीर पोस्ट के साथ संलग्न न करें।सादर✍️🙏
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